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बिना जुताई के फसल उगाने की तरकीब सीखेगा पूरा देश

हैप्पी सीडर मशीन हुुई कारगर : 4 किसानों से हुई शुरुआत 800 पर पहुंचीएक हजार एकड़ में लहलहा रही फसल, संरक्षित खेती बदल रही किसानों की तकदीर 

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mukesh gaur

Mar 19, 2016

fasal

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जबलपुर। जिले के चार किसानों को लेकर शुरू की गई संरक्षित कृषि की कल्पना केवल एक साल में 800 किसानों तक जा पहुंची है। जमीन की उर्वरा क्षमता में वृद्धि के साथ पैदावार में हुई बढ़ोतरी से भी कृषि विवि उत्साहित है। कृषि का रकबा बढऩे से अब इस आधुनिक तकनीक को विवि प्रदेश के बाहर ले जाने की तैयारी में जुटा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पनागर के करीब 50 एकड़ क्षेत्र में शुरू की गई यह पहल आज सिहोरा तक करीब 1000 एकड़ से अधिक में फैल गई है।

और खड़ी हो गई लहलहाती फसल
किसानों के खेतों के साथ कृषि विवि के कैम्पस में भी इस विधि से उगाई फसल लहलहा रही है। इस विधि में बिना जुताई किए हुए किसानों द्वारा दूसरी फसल के रूप में गेहूं, सरसों, मटर, धान, मक्का, चना की यह फसल तैयार की गई है। इस तकनीकी से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि खेत की तैयारी में लगने वाला एवं जुताई में खर्च किए जाने वाले पैसों की सीधी बचत होती है वहीं किसानों द्वारा नरवाई को जलाना बंद कर दिया गया है।

पांच जिलों के पांच-पांच गांव का चयन
जबलपुर से हुई शुरुआत और उसके नतीजों को देखकर महाकौशल के पांच जिलों के पांच-पांच गांवों का चयन किया गया है। यहां किसानों को संरक्षित खेती की दिशा में पहल शुरू कराई गई है। इसके साथ ही तमाम कृषि विज्ञान केंद्रों एवं मप्र कृषि कल्याण विभाग के साथ इस तकनीक को साझा किया जा रहा है। इस खेती के लिए आवश्यक मशीन को हैप्पी सीडर नाम दिया गया है।

कुछ परेशानी भी
दरअसल संरक्षित खेेती के लिए जिस मशीन का उपयोग किया जा रहा है उसे हैप्पी सीडर नाम दिया गया है। इसकी एक व्यववाहरिक दिक्कत भी है कि विवि के पास प्रचुर मात्रा में इस मशीन की उपलबता न होना है। इसको चलाने के लिए जरूरी है 50 से 55 हार्स पावर का हैवी ट्रैकटर। सबसे बड़ी समस्या कृषको की पुरानी सोच है जिस बदलना जरूरी है।

संरक्षित खेती की शुरुआत महज चार किसानों से की थी। किसानों को समझाना बड़ा मुश्किल था। एक साल के प्रयास से आज यह सैकड़ों किसानों तक पहुंच चुकी है। इस तकनीक को अब हम प्रदेश के बाहर ले जाने पर विचार कर रहे हैं।
डॉ.पीके सिंह, निर्देशक खरपतवार अनुसंधान निर्देशालय