हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में कहा कि आपराधिक जांच को बीच में ही रोकना न्यायहित में नहीं है। इस मत के साथ कोर्ट ने हरदा जिले में हुए टॉयलेट निर्माण घोटाले के आरोपित ग्राम रोजगार सहायक व दो सब इंजीनियरों की याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ताओं ने मामले की एफआईआर निरस्त करने का आग्रह किया था। जस्टिस एसके सेठ व जस्टिस अंजुलि पालो की डिवीजन बेंच ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं, जिसमें निहित शक्तियों का प्रयोग किया जाए।
news facts- हाईकोर्ट ने कहा… आपराधिक जांच को बीच में रोकना न्यायहित में नहीं
अभियोजन के अनुसार हरदा जिले की जूनापानी ग्राम पंचायत के ग्राम रोजगार सहायक दिलेश गुर्जर, सब-इंजीनियर्स गणेश पटेल, सुनवीर तिवारी के खिलाफ स्थानीय निवासी महेश कुमार गुर्जर ने विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त को शिकायत की। इसमें कहा गया कि तीनों आरोपितों ने मिलकर ग्राम पंचायत को गरीबों के घरों में टायलेट बनाने के लिए सरकारी योजना में आवंटित रकम का बंदरबांट कर लिया। फर्जी दस्तावेजों के जरिए हितग्राहियों के नाम से रकम निकाली गई। शिकायत की जांच के बाद लोकायुक्त ने भादंवि की धारा 420 सहित अन्य व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं में आरोपितों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। इसी एफआईआर को निरस्त करने का आग्रह करते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत यह याचिका दायर की गई थी। अधिवक्ता संकल्प कोचर ने तर्क दिया कि विद्वेषवश यह झूठी शिकायत की गई। याचिकाकर्ताओं का इस घोटाले में सीधी कोई भूमिका नहीं है। विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त की ओर से अधिवक्ता सत्यम अग्रवाल ने इस पर आपत्ति जताई।