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भगवान विष्णु की अनोखी प्रतिमा, जिसमें उभरे हैं 33 कोटि के देवता

भगवान विष्णु की अनोखी प्रतिमा, जिसमें उभरे हैं 33 कोटि के देवता

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Unique statue of Lord Vishnu

Unique statue of Lord Vishnu

जबलपुर. भगवान विष्णु के तृतीय अवतार भगवान वराह के मंदिर में माघ पूर्णिमा पर 24 फरवरी को भक्तों का मेला लगेगा। दुर्लभ और ऐतिहासिक विष्णु वराह की विशालकाय प्रतिमा जिले के मझौली में स्थित मंदिर में विराजमान है। कलचुरिकालीन प्रतिमा ग्यारहवीं शताब्दी में निर्मित है। इसके संपूर्ण शरीर पर बेहद कलात्मक तरीके से 33 कोटि देवता, ऋषि-मुनि, साधु-संत एवं यक्ष-गंधर्व उकेरे गए हैं, जो स्पर्श से महसूस होते हैं। खड़ी हुई मुद्रा में भगवान वराह की इस मूर्ति का आकार काफी बड़ा है। मूर्ति के नीचे अमृत कलश लिए शेषनाग एवं पीछे माता लक्ष्मी जी की मूर्ति विराजित हैं। शेषनाग के ऊपर तथा वराह के मुख के नीचे शेषशैया में भगवान विष्णु विराजमान हैं। यह सौन्दर्य पूर्ण और आलौकिक रूप मन को मोहित कर लेता है।

प्रांगण और दीवारों में मौजूद हैं सैकड़ों प्रतिमाएं
हजार साल प्राचीन विष्णु वराह मंदिर प्रतिमा पर उभरे हैं 33 कोटि के देव

यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। माघ पूर्णिमा पर यहां दर्शन-पूजन के लिए विष्णु उपासकों का तांता लगता है। मंदिर समिति से जुड़े लोगों ने बताया कि गर्भगृह की अंदर की दीवारों में इंद्रदेव की ऐरावत पर बैठी हुई प्रतिमा है। अन्य प्राचीन मूर्तियां भी हैं। बाहरी दीवारों में सामने की ओर श्री गणेश, श्री हनुमान की मूर्तियां हैं। गर्भगृह में लगे दरवाजे पर भगवान विष्णु, भगवान का वामन अवतार, भगवान गणेश और शेषनाग की छवि अंकित है। चारों ओर माता सरस्वती की मूर्ति है। इनमें से कुछ मूर्तियां मुगलों द्वारा तोड़ दी गई थीं।

गुप्त राजाओं ने बनवाया स्तम्भ

मुख्य दरवाजे के सामने भगवान विष्णु के दस अवतार के चित्र कीर्ति स्तम्भ में निर्मित है।इतिहासकारों का मानना है कि यह स्तम्भ गुप्त और चंदेल शासको के समय निर्मित हुआ। मंदिर परिसर में अष्टभुजाधरी मां दुर्गा, श्री राधा कृष्ण, शिवलिंग व शिवजी, रामदरबार सहित अन्य छोटे मंदिर हैं। इतिहासकार डॉ. आनन्द सिंह राणा बताते हैं कि कलचुरी राजाओं ने 11वीं शताव्दी में इस मंदिर का निर्माण कराया था। कालांतर में ध्वस्त हुए मंदिर का पुनर्निर्माण लगभग 250 वर्ष पूर्व 17-18वीं शताब्दी में किया गया है। जिसका शिखर मूलरूप में नहीं है।

ब्रिटिश इतिहासकार अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1873-1874 ई के दौरान इस मंदिर का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट में इस मंदिर के बारे में बताया।मंदिर पूर्वाभिमुख है, जिसकी बाह्य भित्तियां एवं परकोटे में प्राचीन मूर्तियां जुडी हैं। मंदिर के द्वार शाखाओं में गंगा एवं यमुना का चित्रण हैं। बीचों बीच योग नारायण पद्मासन में बैठे हुए हैं। दोनों ओर नवग्रह प्रदर्शित हैं। मंदिर के काष्ठ कपाटों पर भी देव अलंकरण है।

वृद्धि रोकने ठोकी सोने की कील
स्थानीय प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार विष्णु वराह प्रतिमा मझौली के समीप स्थित नरीला तालाब से एक मछुआरे को मछली पकड़ते समय उसके जाल में फंसी मिली थी। यह छोटे आकार में थी। धीरे-धीरे वृहद आकार लेने लगी। विद्वानों की सलाह पर इस प्रतिमा के सिर पर एक छोटी सी सोने की कील ठोकी गई। तब से यह प्रतिमा आकार में और बड़ी नहीं हो पाई। यह मंदिर मध्य प्रदेश प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1964 के अंतर्गत राजकीय महत्त्व का स्मारक घोषित किया गया है।