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किसानों के सामने अब रहस्यमय बीमारी का संकट, फसलें हो रही बर्बाद

locationजबलपुरPublished: Aug 26, 2020 02:47:46 pm

Submitted by:

Manish Gite

फसलों की रहस्यमय बीमारी से किसान चिंतित है, वैज्ञानिक भी अब तक हल नहीं ढूंढ पाए हैं…।

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जबलपुर। देशभर में भेजा जाने वाले सिंघाड़ा में इस समय रहस्यमय बीमारी से परेशान है। सिंघाड़े के हरे पत्ते अचानक लाल होने लगे हैं, पत्तियां कट रही हैं। फसल चौपट होने लगी है। तालाब और खेतों में लगी फसल में कई प्रकार की महंगी दवा का छिड़काव करने पर भी पौधे खराब हो रहे हैं। फसल मिलने से पहले ही उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। वैज्ञानिक भी हैरान हैं।


जबलपुर जिले की बात करें तो करीब 25 सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में यह फसल लगाई जाती है। कई जगह फसल इस बीमारी से ग्रसित है। प्रदेश में जबलपुर सबसे ज्यादा सिंघाड़ा का उत्पादक जिलों में शामिल है। एक जानकारी के मुताबिक प्रत्येक वर्ष करीब 2 हजार 5 सौ टन का उत्पादन इस क्षेत्र में होता है। आमतौर पर इसकी बोवनी जून के अंतिम सप्ताह और जुलाई के शुरुआत में हो जाती है। जबकि अब फसल निकालने का वक्त आ गया है।

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यह है बड़ा कारण :-:

जानकारों के मुताबिक यह एक प्रकार का लाल कीड़ा है जो फसलों को खराब कर रहा है। दूसरा कारण कुछ समय पूर्व तक गरमी पड़ना है। पनागर क्षेत्र के किसान कालीचरण बर्मन ने बताया कि सिंघाड़ा के पौधों की पत्तियां हरी से लाल हो रही हैं। वह कटकर गलने लगी हैं। उनमें सिंघाड़ा नहीं लग पा रहा है। दो माह में 4 से 5 प्रकार की दवा का चिड़काव किया, लेकिन ज्यादा असर नहीं दिखा। किसान माखन के मुताबिक दुकानदार और दूसरे किसानों की सलाह पर करीब 20 हजार रुपए की दवा का छिड़काव कर चुके हैं, लेकिन महज 10 फीसदी ही असर हो रहा है।

 

क्या कहते हैं वैज्ञानिक :-:

जबलपुर उद्यान की उपसंचालक डॉ. नेहा पटेल कहती हैं कि तापमान ज्यादा होने की वजह से फसल को नुकसान की आशंका है। शिकायतें मिली थीं। किसानों को उपचार की विधि बताई जा रही है। पौधरोपण के समय बीजोपचार किया जाना भी जरूरी होता है। इसमें थायरम और ट्रायकोडरमा का उपयोग किया जाना चाहिए। इसी प्रकार कुछ समय बाद बीज में बदलाव भी जरूरी है।

 

कृषि वैज्ञानिक डॉ. ओम गुप्ता कहते हैं कि बीच में कुछ किसानों ने कीड़ा लगने की शिकायत की थी। उस पर टीम भेजकर जांच कराई थी। उन्हें उपचार के लिए दवाओं के इस्तेमाल की जानकारी दी गई थी। फिर से यह समस्या आ रही है तो इसकी जांच करवाकर निराकरण कराया जाएगा।

 

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दुखी हैं यह किसान :-:

जबलपुर के बरेला के ही अशोक बर्मल भी फसल खराब होने से दुखी हैं। उन्होंने जब एग्रीकल्चर कॉलेज में कृषि के जानकारों से बात की तो वे भी इस बीमारी के बारे में कुछ बोलने से परहेज कर रहे हैं। अशोक ने बताया कि वे भी कहते हैं कि यह बीमारी पहली बार सामने आई है। उन्हें भी इसके बारे में कुछ नहीं पता है। अशोक के मुताबिक यही स्थिति पाटन, मंझोली, पनागर, सिहोरा, मंडला में भी देखने को मिल रही है।


दवा से भी फायदा नहीं हुआ :-:

परेशान किसानों ने पत्रिका को बताया कि जब सिंघाड़े की खेती के बारे में कृषि विशेषज्ञों को बताया तो उन्होंने कई प्रकार की दवा दी, जिनमें पोस्पोरस, लुनार, करंट पावडर ग्रीन पावडर, वेस्पा, मार्शल शामिल हैं। हर सप्ताह 4-5 हजार रुपए की दवा का छिड़काव कर रहे हैं। लेकिन, फसलें नष्ट होने की कगार पर पहुंच गई है। माखन भी ऐसे ही किसान हैं जिनकी फसल बर्बाद हो रही है, साथ ही ऐसी दवा मिल रही है जिससे फसल को बीमारी से बचाया जा सके।

 

पैसा भी गया फसल भी बर्बाद :-:

जबलपुर जिले के बरेला के पास गोपीताल में 18 एकड़ में सिंघाड़ा की खेती पकने का इंतजार कर रहे किसान रामप्रसाद रायकवार को सवा लाख से अधिक का नुकसान हो चुका है। जैसे-तैसे पैसा लेकर उन्होंने सिंघाड़ा लगाया, लेकिन अब उसके पत्ते लाल हो गए और खराब होने लगे। पत्ते भी कई जगह से कटने लगे। अब स्थिति यह है कि पत्ते के नीचे लगा सिंघाड़ा खराब हो गया। रायकवार के मुताबिक लगभग सभी किसानों की फसल में 80 फीसदी फसल बर्बाद हो गई है।

 

गुजरात समेत कई राज्यों में जाता है सिंघाड़ा :-:

मंडला और जबलपुर में काफी सिंघाड़ा हर साल निकलता है, जिसकी गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, बड़ोदरा समेत अन्य राज्यों के बड़े शहरों में भी काफी डिमांड रहती है। हर साल करोड़ों रुपयों का सिंघाड़ा इन राज्यों में भेजा जाता है।

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