
हरियाणा में मनाएंगे अनोखा गणतंत्र दिवस, बनेगा देशभर में नजीर
वर्ष 1992 के पहले नहीं था निजी तौर पर ध्वज फराने का अधिकार
जबलपुर, सरकारी भवन हों या कार्यालय, जहां भी राष्ट्रध्वज फहराया जाता है, वह सूर्यास्त के पूर्व उतार लिया जाता है, लेकिन शहर में एक जगह ऐसी भी है, जहां तिरंगा 12 महीने और 24 घंटे आन-बान और शान से लहराता है। दिन हो या रात हर वक्त यह तिरंगा लोगों के मन में देशभक्ति के जज्बात पैदा करता है। हम बात कर रहे हैं मुख्य रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म क्रमांक छह पर सौ फीट ऊंचा तिरंगे झंडे की। छह मार्च 2019 को पहली बार इस सौ फीट के राष्ट्रध्वज का रोहण हुआ। इसके बाद गर्मी और बारिश के बाद ठंड आ गई, लेकिन यह झंडा तब से बुलंद हैं।
2002 में मिला हर एक को ध्वजारोहण का अधिकार
उद्योगपति नवीन जिंदल वर्ष 1992 में अमेरिका में पढ़ाई कर भारत लौटे। वर्ष 1992 में उन्होंने अपने कारखाने में तिरंगा फहराना शुरू किया, तो उन्हें जिला प्रशासन ने दण्डित करने की चेतावनी दी। जिस पर निजी तौर पर राष्ट्रध्वज National flag फहराने के अधिकार को लेकर वे दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गए। सात साल चली कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक को आदर, प्रतिष्ठा एवं सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार है। इस प्रकार यह प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार बना। इस फैसले के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फ्लैग कोड में संशोधन किया था। इसके पूर्व स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अलावे किसी भी दिन भारत के नागरिकों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अधिकार नहीं था। खास कर अपने घरों या कार्यालयों में। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से 26 जनवरी 2002 से भारत सरकार फ्लैग कोड में संशोधन कर भारत के सभी नागरिकों को किसी भी दिन राष्ट्र ध्वज को फहराने का अधिकार दिया।
2009 में मिली रात के लिए अनुमति
वर्ष 2009 में गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर यह प्रस्ताव दिया कि देश में रात को भी विशाल ध्वज दंड पर राष्ट्रीय ध्वज यानी तिरंगा फहराने की अनुमति दी जाए। गृह मंत्रालय ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है।
अब भी जारी है परंपरा, होता है ध्वजारोहण
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित कुंजबिहारी पाठक का देश और तिरंग के प्रति प्रेम इस बात से साबित होता है कि देश के आजाद होने के बाद भी उनके घर पर प्रत्येक गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर वे स्वयं ध्वाजरोहण करते थे। वर्ष 2000 में उनका निधन हो गया। इसके बावजूद उनकी पत्नी अनुराधा पाठक और बेटे सुधीर पाठक ने यह क्रम जारी रखा और अब भी गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर उनके यहां ध्वजारोहण होता है।
Published on:
25 Jan 2020 07:11 pm
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