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बस्तर में पर्यावरण संरक्षण के लिए पहाड़ी इलाके की ढाल में मिट्टी के कटाव रोकने अपनाई जा रही ये कारगर विधि

पर्यावरण संरक्षण के लिए अब खोदी जा रही है एक एक मीटर गहरी खाई, जिले के 106 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत जारी है काम

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बस्तर में पर्यावरण संरक्षण के लिए पहाड़ी इलाके की ढाल में मिट्टी के कटाव रोकने अपनाई जा रही ये कारगर विधि

बस्तर में पर्यावरण संरक्षण के लिए पहाड़ी इलाके की ढाल में मिट्टी के कटाव रोकने अपनाई जा रही ये कारगर विधि

जगदलपुर. पर्यावरण को बचाना हमारा कर्तव्य है इस कर्तव्य को पूरा करने में यदि आमदनी हो तो हर कोई इसका सहभागी बनना पसंद करेगा। बस्तर जिले के विकासखण्डों में स्थित पहाड़ी क्षेत्र की भूमि पर मनरेगा के तहत स्टैगर्ड कंटूर ट्रेंच विधि से काम किया जा रहा है। इस विधि से जल एवं मृदा संवर्धन के साथ.साथ वृक्षारोपण को भी बढ़ावा मिल रहा है। वर्तमान में ट्रेंच को तैयार कर लिया गया है बरसात के समय इनमें पौधरोपण का कार्य किया जाएगा।

सीईओ जिला पंचायत इंद्रजीत चन्द्रवाल के मार्गदर्शन में जिले के 106 ग्राम पंचायतों में स्थित छोट- छोटे पहाडिय़ों में स्टैगर्ड कंटूर ट्रेंच विधि का उपयोग कर जल, मृदा संवर्धन के साथ- साथ पर्यावरण संरक्षण करने का प्रयास किया जा रहा है। मनरेगा के तहत् 106 ग्राम पंचायत में यह कार्य किया जा रहा है। जिसमें 64 ग्राम पंचायत में पूर्ण कर लिया गया हैए 52 ग्राम पंचायत में कार्य प्रगति पर है। इस कार्य में 8 हजार से अधिक लोगों को मनरेगा के तहत् रोजगार का अवसर मिला है। चन्द्रवाल ने संबंधित जनपद सीईओ को पौधारोपण की तैयारी करने के निर्देश दिए हैं।

खाई से रुकता है मिट्टी का कटाव
एससीटी कंपित खाई वाली तकनीक ढलान वाली भूमि के सतह में पानी के बहाव और मिट्टी के कटाव को कम करने और अनउपजाऊ भूमि को उपजाऊ बनाने तथा पुन: वनस्पति या वृक्षारोपण के लिए उपयोगी हो सकते हैं। यह विशेष रूप से उच्च वर्षाए खड़ी ढलानों और पतली मिट्टी वाले क्षेत्रों के लिए उपयोगी है। ट्रेंच के मध्य जल निकासी के लिए थोड़े क्रमबद्ध खाइयों का निर्माण किया जाता है। खाइयों को 1 मीटर की ऊपरी चौड़ाई और 1मीटर की निचली चौड़ाई और 0.6 मीटर की गहराई के साथ एक ट्रेपोजॉइड आकार में खोदा जाता है। निकाली गई मिट्टी का उपयोग खाई से डाउनहिल बनाने के लिए किया जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में ट्रेंच के निर्माण से वर्षा जल संरक्षित होता है। मिट्टी का क्षरण कम होता हैए उपजाऊ मिट्टी के कणों को पुनस्र्थापित करता है जो पानी और हवा के बल से नहीं खोते हैं। यह कार्य बारिश के समय में भी किया जा सकता है।