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जानिये दुनिया के इस सबसे लम्बे अवधि तक चलने वाले त्यौहार के बारे में, बलि देकर होती है शुरुआत

locationजगदलपुरPublished: Sep 27, 2019 06:00:15 pm

Submitted by:

Karunakant Chaubey

Bastar Dussehra 2019: बस्तर में मनाया जाने वाला विश्वप्रसिद्ध दशहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से कितना समृद्ध है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह त्यौहार बस्तर के आदिवासी पिछले 600 साल से ज्यादा समय से मनाते आ रहे हैं। दुनिया का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला यह त्यौहार पूरे 75 दिन तक मनाया जाता है।

बलि देकर दुनिया के सबसे लम्बे अवधि तक चलने वाले त्यौहार की तैयारी शुरू, विश्व भर के पर्यटकों का लगता है जमावड़ा

बलि देकर दुनिया के सबसे लम्बे अवधि तक चलने वाले त्यौहार की तैयारी शुरू, विश्व भर के पर्यटकों का लगता है जमावड़ा

जगदलपुर. Bastar Dussehra 2019: जगदलपुर में 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर का प्रसिद्ध दशहरा की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। बुधवार को मोंगरी मछली, एक बकरा और एक अंडे की बलि देकर मगर मुहि पूजा विधान पूरा किया गया। इस पूजा विधान के बाद बस्तर दशहरे के विशेष आकर्षण भगवान् श्री राम के रथ में चेचीस लगाया गया।

बस्तर में मनाया जाने वाला विश्वप्रसिद्ध दशहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से कितना समृद्ध है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह त्यौहार बस्तर के आदिवासी पिछले 600 साल से ज्यादा समय से मनाते आ रहे हैं। दुनिया का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला यह त्यौहार पूरे 75 दिन तक मनाया जाता है।

बस्तर दशहरा का इतिहास

आदिवासियों की अभूतपूर्व भागीदारी की वजह से भी इस पर्व को जाना जाता है। आदिवासियों ने प्रारंभिक काल से ही बस्तर के राजाओं को हर तरह से सहयोग दिया। इसका परिणाम यह निकला, बस्तर दशहरा का विकास एक ऐसी परंपरा के रूप में हुआ जिस पर आदिवासी समुदाय ही नहीं समस्त छत्तीसगढवासी गर्व करते हैं।

 

बलि देकर दुनिया के सबसे लम्बे अवधि तक चलने वाले त्यौहार की तैयारी शुरू, विश्व भर के पर्यटकों का लगता है जमावड़ा
बस्तर राज्य के समय परगनिया, मांझी, मुकद्दम, कोटवार व ग्रामीण दशहरे की व्यवस्था में समय से पहले ही जुट जाया करते थे। आज यह व्यवस्था शासन-प्रशासन करता है लेकिन पर्व का मूलस्वरुप आज भी वैसा ही बना हुआ है।एक अनश्रुति के अनुसार बस्तर के चालुक्य नरेश भैराजदेव के पुत्र पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी तक पदयात्रा कर मंदिर में एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ तथा स्वर्ण भूषण तथा सामग्री भेंट में अर्पित की थी।
इस पर पुजारी को स्वप्न आया था। स्वप्न में श्री जगन्नाथ ने राजा पुरुषोत्तम देव को रथपति घोषित करने के लिए पुजारी को आदेश दिया था। कहते हैं, राजा पुरुषोत्तम देव जब पुरी धाम से बस्तर लौटे तभी से गोंचा और दशहरा पर्व पर रथ चलाने की प्रथा चल पड़ी। राजा पुरुषोत्तम देव ने फागुन कृष्ण चार दिन सोमवार संवत 1465 को 25 वर्ष की आयु में शासन की बागडोर संभाली थी।
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इस बार टूट गयी 600 साल की परम्परा

बस्तर में 75 दिन तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरे में हरियाली अमावस्या के मौके पर रथ निर्माण के लिए पाट जात्रा पूजन का विधान हर साल पूरा किया जाता है। इस साल भी यह विधान पूरा हुआ लेकिन परंपराओं को तोड़ते हुए। बस्तर दशहरा की पंरपरा के अनुसार पाट जात्रा के लिए होने वाली पूजा में बस्तर महाराजा की तरफ से माझी-मुखिया पूजन सामग्री लेकर सिरहासार पहुंचते हैं।

पूजन सामग्री महाराजा से स्पर्श करवाने के बाद पूजन स्थल पर लाई जाती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। बस्तर के महाराजा को जिला प्रशासन ने सुबह 11 बजे माझी-मुखिया के माध्यम से पूजन सामग्री भेजने के लिए कहा था लेकिन राज परिवार की तरफ से भेजी जाने वाली सामग्री के बगैर ही पूजा सुबह 9.30 बजे कर ली गई।

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नहीं किया जाता रावण दहन

यहां मनाया जाने वाला दशहरा पर्व इसलिए भी अूनठा है क्योंकि जहाँ पुरे भारत में दशहरा पर रावण दहन की परम्परा है वहीं बस्तर में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता। यह पर्व बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की आराधना से जुड़ा हुआ है। यह संगम है बस्तर की संस्कृति, राजशाही, सभ्यता और आदिवासी के आपसी सद्भावना का।

रथ बनाने में लगते हैं दो सौ लोग

झारउमरगांव व बेड़ाउमरगांव के डेढ़- दो सौ ग्रामीण रथ निर्माण की जिम्मेदारी निभाते दस दिनों में पारंपरिक औजारों से विशाल रथ तैयार करते हैं। इसमें लगने वाले कील और लोहे की पट्टियां भी पारंपरिक रुप से स्थानीय लोहार सीरासार भवन में तैयार करता है। ये लोहार टेकामेटा गांव के होते हैं । इन लोहारो को लोहे की सिल्ली दी जाती हैं।

वे अपनी जरूरत के हिसाब से आवश्यक उपकरण तैयार करते हैं। काष्ठ के बने पहिए जो टुकड़ों में होता हैं, इन्हें लोहे के चादर से जोड़ी जाती हैं। और पहिए के केन्द्र जहां एक्सिल फीट होता हैं वहा भी लोहे का आवरण लगा दिया जाता हैं ,जिससे रथ सुगमता से चल सके। अपने काम में दक्ष ये लोहार सिर्फ दो दिनो में पूरा करते हैं। इस वर्ष चार चक्के के फूल रथ का निर्माण हो रहा है।

शुरू हो चुकी है रथ निर्माण की प्रक्रिया

विश्व प्रसिद्ध दशहरे में हरियाली अमावस्या के मौके पर रथ निर्माण के लिए पाट जात्रा पूजन का विधान हर साल पूरा किया जाता है। इस साल भी यह विधान पूरा हुआ लेकिन परंपराओं को तोड़ते हुए। बस्तर दशहरा की पंरपरा के अनुसार पाट जात्रा के लिए होने वाली पूजा में बस्तर महाराजा की तरफ से माझी-मुखिया पूजन सामग्री लेकर सिरहासार पहुंचते हैं।

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