scriptदरबार सजेगा, दरबारी भी होंगे……. पर नहीं सुनी जाएगी फरियाद, बस्तर दशहरा के 610 सालों में पहली बार टूटेगी ये परंपरा | Code of conduct of Chitrakot bypoll will affect Bastar Dussehra 2019 | Patrika News

दरबार सजेगा, दरबारी भी होंगे……. पर नहीं सुनी जाएगी फरियाद, बस्तर दशहरा के 610 सालों में पहली बार टूटेगी ये परंपरा

locationजगदलपुरPublished: Oct 02, 2019 06:20:35 pm

Submitted by:

Badal Dewangan

बस्तर दशहरा की 600 सालों से चल रही मुरिया दरबार में 1965 के पहले बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव इसमें शामिल होते थे।
 
 

दरबार सजेगा, दरबारी भी होंगे....... पर नहीं सुनी जाएगी फरियाद, बस्तर दशहरा के 610 सालों में पहली बार टूटेगी ये परंपरा

दरबार सजेगा, दरबारी भी होंगे……. पर नहीं सुनी जाएगी फरियाद, बस्तर दशहरा के 610 सालों में पहली बार टूटेगी ये परंपरा

जगदलपुर. बस्तर दशहरा की 6 शताब्दी से जारी मुरिया दरबार की परंपरा इस बार फिर टूट जाएगी। हालांकि सिरहासार भवन में रस्म तौर पर दरबार सजाया जाएगा। लोगों के सवालों को सुनने के लिए हाकिम भी मौजूद रहेंगे, लेकिन फरियाद सुनने वाला कोई नहीं होगा। इसकी वजह चित्रकोट उपचुनाव (Chotrakot By election) के लिए आचार संहिता प्रभावी होना है।

राजपरिवार के बजाए जनप्रतिनिधि जनता की समस्या सुनते रहे
ज्ञात हो कि बीते साल भी विधानसभा चुनाव की आचार संहिता प्रभावशील रहने से मुरिया दरबार सादगी से निपट गया था। मुरिया दरबार बस्तर दशहरा पर्व की आखिरी रस्म है। इसके बाद दूरदराज से आए हुए देवी-देवताओं की विदाई होती है। इस बार गुरुवार 10 अक्टूबर को सिरहासार भवन में मुरिया दरबार लगेगा। राजशाही के दौर में शुरू हुई इस परंपरा में दशहरा में शामिल होने आए मांझी, चालकी, मेंबर, मेंबरीन, कोटवार, नाईक, पाईक व ग्रामीण प्रतिनिधियों की बात सीधे राजपरिवार के लोग सुनते थे और उनका निराकरण होता था। आजादी के बाद यह पंरपरा जारी तो रही, लेकिन राजपरिवार के बजाए जनप्रतिनिधि जनता की समस्या सुनते रहे हैं।

सीएम की अगुवाई में सज रहा दरबार
पिछले ८ साल से मुख्यमंत्री की अगुवाई में दरबार सजता आया है। इसमें वे समस्या सुनने, समाधान करने के साथ ही कई घोषणाएं किया करते हैं। 1965 के पहले बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव इसमें शामिल होते थे।

सिरहासार में सजता है मुरिया दरबार
बस्तर रियासत अपने राज्य को कारगर ढंग से संचालित करने के लिए परगना बनाकर उनकी जवाबदेही के लिए मूल आदिवासियों से मांझी (मुखिया) की नियुक्ति की गई थी। यह मांझी अपने क्षेत्र की समस्याएं राजा तक पहुंचाया करते थे। वहीं राजा के आदेश से ग्रामीणों को अवगत भी कराते थे। बताया जाता है कि मुरिया दरबार में राजा द्वारा निर्धारित ८० परगाना के मांझी अपने क्षेत्र की समस्याओं से पहले राजा अब सरकार को अवगत कराते हंै।

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