रियासत काल के दौरान बस्तर में हल्बी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त था। राजपरिवार के आमंत्रण, लेखन कार्य, आदेश हल्बी बोली में कहे सुने जाते थे किन्तु आज़ादी के बाद हल्बी के विकास के लिए ज्यादा काम नहीं हो पाया है | साहित्यकार रूद्र नारायण पाणिग्रही के हल्बी शब्दकोश से हल्बी के संरक्षण के दिशा में मदद मिलेगी |
जगदलपुर। बस्तर संभाग में गोंडी, दोरली, भतरी व हल्बी बोली अलग अलग भूभाग में प्रचलित है। लेकिन इन सभी बोली - भाषाओं को बोलने वाली जनजातियों को एक सूत्र में बांधने यदि किसी भाषा को मान्यता मिली है तो वह है हल्बी।
किसी बोली को भाषा की मान्यता तभी मिलती है, जब उसकी स्पष्ट लिपि हो, व्याकरण हो। इन तथ्यों से हल्बी परिपूर्ण है। इसलिए इसे भाषा का दर्जा देने पहल हो गई है। लिपि व व्याकरण के बाद अब इसका शब्दकोश भी रचा जा चुका है। साहित्यकार रूद्र नारायण पाणिग्रही ने हल्बी के 7 हजार से अधिक शब्दों का संकलन कर हिंदी - हल्बी शब्दकोश रच डाला है। 273 पृष्ठो में छपे इस शब्द कोष में हल्बी के शब्द, हिंदी में उसका अर्थ, स्वर व व्यंजन दिए गए है। इस शब्दकोश का विमोचन गण तंत्र दिवस पर एक विशेष समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल करेंगे।
रियासत काल में हल्बी थी राजभाषा
बस्तर में हल्बी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त था। राजपरिवार के आमंत्रण, लेखन कार्य, आदेश हल्बी बोली में कहे सुने जाते थे। मुनादी के लिए हल्बी का उपयोग आज भी बहुतायत से प्रचलन में है। लोक साहित्यकारों के हल्बी में लिखे कथा , कहानी, काव्य, नाटक से इस बोली का साहित्य संसार समृद्ध है। पिछले दिनों बस्तर के साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए काफी प्रयास तेज हुए है |
चार अन्य पुस्तकों का होगा विमोचन
हिंदी - हल्बी डिक्शनरी के साथ ही, हल्बी व्याकरण, बस्तर के लोकपर्व, हल्बी कहावतें व मुहावरे सहित चार अन्य किताबों का विमोचन भी गणतंत्र दिवस पर किया जाएगा।