
If you want to see the flight of the white crow, then come here
अजय श्रीवास्तव ।जगदलपुर। कौवा और काला रंग एक दूसरे के पर्याय हैं। ऐसे मे सफेद कौवा को देखे जाने की बात तो दूर ऐसा कहना भी ख्याली पुलाव लगता है। पर अब शहर के दलपत सागर के आसपास सफेद कौवा दिखाई देने से सफेद कौवा वाली बात साबित हो गई है। कुछ इसे कबूतर भी कह रहे हैं, पर पक्षी विज्ञानी ने साबित किया है कि यह कौवा ही है। दलपतसागर जलाशय से सटे धरमपुरा इलाके में सालभर से एक दुर्लभ सफेद कौवा घूम रहा है। यह कौवा आम कौवे के साथ ही उड़ता रहता है। अब इसकी उपस्थिति पर जीव विज्ञानी नजर रखे हुए हैं। लगातार शोध के बाद अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल एंबियंट साइंस में इसका विवरण भी प्रकाशित किया गया। धरमपुरा क्षेत्र बड़े पेड़ों से भरा है। कच्चे से लेकर पक्के मकान तक हैं। जहां इनके रहवास व आहार की अच्छी सुविधाएं हैं।
इनकी सुरक्षा और बचाव जरूरी: पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक सफेद कौवा की आवाज काले और भूरे रंग के कौवा से अलग है। लेकिन रिकॉर्डिंग यंत्र से आवाज की भिन्नता के अध्ययन की जरूरत है। ये देश के कई भाग में मिल चुके हैं। इन पर अधिकाधिक शोध की है। रंग कणिकाओं का कम होना है वजह: -डॉ. सुशील दत्ता, विभागाध्यक्ष प्राणी विज्ञान, पीजी कॉलेज ने बताया कि संभवत: छत्तीसगढ़ का यह पहला मामला है। ल्यूसिस्टिक का मतलब रंग कणिकाओं का कम होना होता है। मिलेनिन कणिकाएं पंख और चमड़ी में कम हो जाती हैं इससे ये सफेद दिखते हैं। डायरेक्टर, कांगेर घाटी नेशनल पार्क धम्मशील गणवीर ने बताया कि वन्य जीवों के साथ ही पक्षियों की संख्या में भी कमी आई है। पर्यावरणीय प्रदूषण इसका बड़ा कारण है। रहवास कम होने से कौवा भी शहर में कम नजर आ रहे हैं।
श्राद्ध पक्ष में अब कम नजर आ रहा कौवा: कौवा एक विस्मयकारक पक्षी है। इनमें इतनी विविधता पाई जाती है कि इस पर एक 'कागशास्त्र' की भी रचना की गई है। आसानी से दिखाई देने वाली यह प्रजाति कई स्थानों पर दिखाई नहीं दे रही है। बिगड़ रहे पर्यावरण की मार कौओं पर भी पड़ी है। स्थिति यह है कि श्राद्ध में अनुष्ठान पूरा करने के लिए कौए तलाशने से भी नहीं मिल रहे हैं। कौए के विकल्प के रूप में बंदर और गाय और अन्य पक्षियों को भोजन का अंश देकर अनुष्ठान पूरा कर रहे हैं। भारत में पाई जाती हैं छह प्रजातियों: कौए की छह प्रजातियाँ भारत में मिलती हैं। भारत के ख्याति प्राप्त पक्षी विज्ञानी सलीम अली के हैन्डबुक में दो का ही ज़िक्र किया है- एक जंगली कौआ (कोर्वस मैक्रोरिन्कोस) तथा दूसरा घरेलू कौआ (कोर्वस स्प्लेन्ड़ेंस)। जंगली कौआ पूरी तरह से काले रंग का होता है, जबकि घरेलू कौआ गले में एक भूरी पट्टी लिए हुए होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि कौओं का दिमाग लगभग उसी तरीके से काम करता है, जैसे चिम्पैन्जी और मानव का। वैज्ञानिक इनको उम्दा चतुर पक्षियों में गिनते हैं।
Published on:
11 Sept 2022 08:35 pm
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