नए कपड़े में चंदन का लेप देकर एक मूर्ति बनाई जाती है। उस मूर्ति को पुष्पाच्छादित कर दिया जाता है। मावली माता निमंत्रण पाकर दशहरा पर्व में सम्मिलित होने जगदलपुर पहुँचती हैं। पहले इनकी डोली को राजा, कुँवर, राजगुरु और पुजारी कंधे देकर दंतेश्वरी मंदिर तक पहुँचाते थे। आज भी पुजारी, राजगुरु और राजपरिवार के लोग श्रद्धा सहित डोली को उठा लाते हैं।