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पांडवों से जुड़ा वो चमत्कारी पहाड़ जहां आज भी मौजूद हैं महाभारत काल के अवशेष, बस्तर में मिला भगवान शिव और भीम का पद चिन्ह

Bastar News: बस्तर का उल्लेख पौराणिक काल से ही मिलता रहा है। वर्तमान बस्तर को रामायण काल में दण्डकारण्य व महाभारत काल मे कांतार के नाम से कई पौराणिक साहित्यों मे उल्लेख किया गया है।

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Jagdalpur News: बस्तर (Bastar) का उल्लेख पौराणिक काल से ही मिलता रहा है। वर्तमान बस्तर को रामायण काल (Ramayan period) में दण्डकारण्य व महाभारत (Mahabharata) काल मे कांतार के नाम से कई पौराणिक साहित्यों मे उल्लेख किया गया है। इसके प्रमाण भी पूरे बस्तर में बिखरे हुए नजर आते हैं। ऐसा ही एक प्रमाण बीजापुर में पुजारी कांकेर में दिखाई देता है। पुजारी कांकेर स्थित पांडव पर्वत मे पांच पांडवों के अलग अलग मन्दिर (Hindu temple) अब भी विद्यामान हैं। इसके अलावा भोपालपटनम का सकलनारायण गुफा को भी पांडव कालीन से संबंधित होना इतिहासकारों ने बताया है।

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ग्राम के लक्की नारायण और दया सिंह, इतिहास के जानकार रोहन कुमार व कछ समाजसेवी इस बात की तस्दीक करने भीम शिला पहाड़ी पहुंचे थे। यहां उन्होंने पाया कि कुछ पत्थरों पर पांव की आकृति देखी जा सकती है। जन श्रुति के अनुसार यह पग चिह्न भीम या शिव के पैरों के निशान हैं। इसके साथ ही खुर के निशान की तुलना नंदी से की जा रही है। बस्तर वैसे भी रामायण, महाभारत काल, छिंदक, नल, गुप्त, काकतीय राजवंश की सत्ता में शामिल रहा है। इसके बावजूद इन जगहों को लेकर दशकों से पुरातत्व विभाग कोई उत्खनन नहीं कर रहा है द्य जानकारों का कहना है कि इस क्षेत्र को संरक्षित और अनुसंधान करने की आवश्यकता है ताकि वास्तविक इतिहास सुरक्षित रहे।

दया सिंह सूर्यवंशी ग्राम निवासी ने बताया की पूर्वजो से हम इन पहाड़ियों को पूजते आ रहे हैं, हमारे पूर्वजो का कहना था की यह देवताओं का पहाड़ है यहाँ वह निवास करते हैं द्य लक्की नारायण मांझी परिवार ने बताया की उनके पूर्वज बताते थे कि यहां पांडव कुछ समय व्यतीत किये थे।

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बस्तर के साथ ही बिलासपुर व रायपुर में भी हैं प्रमाण

इतिहास के जानकार रोहन कुमार ने बताया सहदेव द्वारा विजित क्षेत्र प्राक्कोसल ( छत्तीसगढ़) में, बिलासपुर जिले के रतनपुर ( मणिपुर) व रायपुर जिले के आरंग( भांडेर) से मोरध्वज व ताम्रध्वज की निशानियां मिली हैं। इसी तर्ज में महासमुंद जिले के सिरपुर(चित्रांगदपुर) से अर्जुन पुत्र बभ्रूवाहन की निशानियां देखी गई हैं। महासमुंद जिले के खल्लारी ( खल्लवाटिका) से भीम के पदचिन्ह, भीम चूल्हा, भीम खोह, लाक्षागृह व सक्ती जिले के गुंजी (दमउदरहा) ऋषभदेव, व मुंगेली जिले का पंडवानी तालाब पांडवो द्वारा निर्मित माना जाता है।