
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
जयपुर पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क। करीब 24 साल से चुनाव से ठीक पहले मुद्दा बनता रहा पिछड़ा वर्ग आरक्षण एक बार फिर बहस में छा गया है। बुधवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण को 21 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की मंशा जाहिर कर दी, जिस पर कानूनविदों का कहना है कि कोर्ट बार-बार आरक्षण को 50 प्रतिशत की सीमा से पार नहीं करने की कहता रहा है, अध्ययन के आधार पर विशेष परिस्थिति प्रमाणित होने पर ही यह सीमा पार हो सकती है। मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे प्रकरण में भी यह विषय शामिल था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी नहीं दी।
सबसे पहले 2008 में बना कानून
वर्ष 2008 से लेकर अब तक राजस्थान में पिछड़ा वर्ग आरक्षण को बढ़ाने का छठवीं बार प्रयास हो रहा है, पहले पांच प्रयास विशेष परिस्थितियां बताकर पिछड़ा वर्ग की पांच जातियों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए हुए। चार साल पहले अति पिछड़ा वर्ग को पांच और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत लागू किया। इसमें से अति पिछड़ा वर्ग का मामला अभी हाईकोर्ट में लंबित है, हालांकि इस पर कोर्ट की रोक नहीं है।
हाईकोर्ट में पिछड़ा वर्ग आरक्षण के मामले पर सुनवाई कर चुके दो न्यायाधीशों का इस विषय पर कहना है कि पिछड़ा वर्ग आरक्षण विशेष परिस्थितियों में पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश पर ही बढ़ाया जा सकता है, इसके विपरीत कुछ किया जाता है तो वह कोर्ट के साथ संविधान के भी खिलाफ होगा।
इनमें से एक सेवानिवृत्त र्हाईकोर्ट न्यायाधीश ने नाम न छापने की शर्त पर कहा है कि आरक्षण बढ़ाने के लिए पहले सर्वे आवश्यक है और फिर यह देखना होगा कि जाति के आधार पर आनुपातिक आरक्षण की क्या स्थिति है। इसके बाद पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश पर सरकार परीक्षण करेगी, तब ही आरक्षण बढ़ सकता है। आरक्षण बढ़ाने के लिए कानून में संशोधन करना होगा, जिसके लिए विधानसभा की मंजूरी भी आवश्यक है। ऐसा करने के बाद ही आरक्षण में बढ़ोतरी संविधान के अनुरूप होगी, अन्यथा संविधान के खिलाफ होगी।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर एस राठौड़ ने कहा कि कानूनन विशेष परिस्थिति के अलावा 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता, सरकार को तो जो करना है कर देगी। सरकार कोर्ट के बार-बार रोकने के बावजूद आरक्षण को बढ़ा भी चुकी है। राजस्थान में आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा पार कर चुकी है और उस पर वर्तमान में रोक भी नहीं है। रोक लग भी जाती, तो सरकारें जैसे मामले कोर्ट के ऊपर डालती रहीं हैं इस बार भी डाल दिया जाता।
ऐसे चला सिलसिला
30 जुलाई 2008- अनुसूचित जाति को 16%, अनुसूचित जनजाति को 12%, पिछड़ा वर्ग को 21%. अति पिछड़ा वर्ग को 5% और आर्थिक पिछड़े वर्ग को 14 % आरक्षण देने के लिए कानून पारित किया, जो 2009 में लागू किया गया।
22 दिसम्बर 2010- हाईकोर्ट ने कानून की पालना रोक दी। साथ ही, कहा कि सर्वे के बाद पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के आधार पर आरक्षण बढ़ाया जा सकता है। आर्थिक पिछड़ा वर्ग के 14% आरक्षण पर पुनर्विचार करने को कहा।
30 नवम्बर 2012- राज्य सरकार ने विशेष पिछड़ा वर्ग का 5% आरक्षण लागू करने का निर्णय किया।
29 जनवरी 2013- राजस्थान हाईकोर्ट ने इस आरक्षण पर रोक लगा दी।
4 मार्च 2013 - हाईकोर्ट ने एसबीसी को 1 प्रतिशत की छूट देते हुए आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा में रखने का आदेश दिया।
16 अक्टूबर 2015 - राज्य सरकार ने विशेष पिछड़ा वर्ग को 5 प्रतिशत आरक्षण के लिए नया कानून बनाया।
9 दिसम्बर 2016 - हाईकोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया।
17 नवम्बर 2017 - सरकार ने एसबीसी को 5 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए नया कानून बनाया।
20 दिसम्बर 2017 - एसबीसी को 5 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। बाद में लाभ एक प्रतिशत का ही दिया। 5 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट में लंबित है।
13 फरवरी 2019 - राज्य सरकार ने 5 प्रतिशत आरक्षण के लिए कानून में संशोधन किया, जिसके खिलाफ भी मामला सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट में लंबित है।
Published on:
11 Aug 2023 11:45 am
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