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प्रदेश की 3.92 लाख गर्भवती महिलाएं अवसाद से ग्रसित

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे।

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pregnant women

जयपुर . गर्भावस्था के दौरान अकेले रहना, बार-बार निराश होना, आत्मविश्वास की कमी होना और हीनभावना रखना। नतीजा अवसाद के बीच घिरे रहना। जी हां, गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद महिलाएं मातृत्व अवसाद से ग्रसित रहती हैं। भारत में 15 से 20 फीसदी महिलाएं मातृत्व अवसाद से ग्रसित होती हैं।

यह चौंकाने वाले तथ्य नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में आए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अधिकतर महिलाएं जानकारी के अभाव में इस रोग से अनभिज्ञ रहती हैं, इसलिए इस बारें में प्रसूताओं को जागरूक करने की आवश्यकता है।

5 में से एक में अवसाद

मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने वाली संस्थान आरोग्य सिद्धि फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ भूपेश दीक्षित ने बताया कि विकसित देशों में 10 में से 01 महिला गर्भावस्था के दौरान एवं प्रसव पश्चात अवसाद से पीडि़त है। भारत जैसे विकासशील देशों में 05 में से 01 महिला अवसाद से पीडि़त होती है। ऐसा गर्भावस्था तथा प्रसव के बाद होने वाले हार्मोनल एवं शारीरिक बदलाव के कारण होता है। प्रसव के बाद एक महिला के शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन का स्तर तेजी से गिरता है, जिससे मस्तिष्क में रासायनिक परिवर्तन हो जाते हंै और महिलाएं अवसाद में चली जाती हैं।

हर साल 19 . 60 लाख महिलाएं होती गर्भवती

चिकित्सा विभाग के अनुसार प्रदेश में प्रतिवर्ष अनुमानत: 19.60 लाख महिलाएं गर्भवती होती हैं। इनमें से लगभग 3,92,000 अवसाद ग्रसित हैं, जिनका प्रारंभिक स्तर पर जांच-उपचार नहीं होता। सीधा असर मां और उसके होने वाले बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है। सर्वे के अनुसार प्रदेश में 0-3 साल के मात्र 28.4 प्रतिशत बच्चों को ही माताएं जन्म के एक घंटे में स्तनपान करवाती है। प्रदेश के 23 प्रतिशत नवजात (0-28 दिवस) जन्म के समय 2.5 किलो से कम के पैदा होते हैं और 0-5 वर्ष के 39 प्रतिशत स्टंटेड यानि कि आयु के अनुसार लम्बाई के मामले में कुपोषण के शिकार हैं।

यह है वजह

गर्भावस्था से पहले या गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक तनाव, वैवाहिक जीवन में कलह, पारिवारिक या आर्थिक समस्या, अनियोजित एवं अनचाही प्रेगनेंसी, परिवार और समाज के लोगों से सहयोग ना मिलना, हिंसा, बलात्कार आदि।

आत्महत्या की

सर्वे के अनुसार देश में 2015 में 18 से 45 वर्ष तक की 28,902 महिलाओं ने आत्महत्या की, जिनमें से अवसाद के कारण 1678 ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। विशेषज्ञों के अनुसार समय पर लक्षणों की पहचान और उपचार लेने से यह रोग पूर्णत: ठीक हो जाता है।

क्या करें

- मन की बात साझा करें

- अपने किसी विश्वासपात्र व्यक्ति या वे व्यक्ति जो आपकी देखभाल एवं परवाह करते हंै, उनसे अपने मन की बात, चिंताएं और भावनाएं खुल कर साझा करें

- प्रसवपूर्व एवं प्रसव पश्चात स्वयं की और नवजात की स्वास्थ्य विशेषज्ञों से नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं

-नियमित रूप से व्यायाम करें

-परिवार, दोस्तों और पति को समय दें एवं उनसे सतत संपर्क में रहे

-धूम्रपान एवं अन्य मादक पदार्थों का सेवन ना करें


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