न ई टेलीकॉम नीति के अनुसार, टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर का कुछ हिस्सा वार्षिक लाइसेंस फीस के तौर पर सरकार को देना जरूरी है। इसके साथ ही रेडियो फ्रीक्वेंसी के प्रयोग के लिए स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज (एसयूसी) भी देना जरूरी है। कंपनियां अपने हिसाब से गणना के आधार पर स्पेक्ट्रम शुल्क और लाइसेंस फीस चुकाती हैं। दूरसंचार विभाग लगातार बकाया की मांग करता रहा है। विभाग ने कहा था कि एजीआर में डिविडेंड, हैंडसेट की बिक्री, किराया और कबाड़ की बिक्री भी शामिल होनी चाहिए। कंपनियों की दलील थी कि एजीआर में सिर्फ प्रमुख सेवाएं शामिल की जाएं। इस मामले में अदालत ने अगस्त में फैसला सुरक्षित रखा था।
२०त्न तक लुढ़के शेयर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद टेलीकॉम कंपनियों के शेयरों में २० प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। वोडाफोन-आइडिया के शेयरों में ये गिरावट दर्ज की गई। वहीं भारती एयरटेल के शेयर में ६ फीसदी का नुकसान हुआ है।
भारती एयरटेल 21682 करोड़, वोडाफोन 19823 करोड़, रिलायंस 16456 करोड़, बीएसएनएल 2098 करोड़, एमटीएनएल 2537 करोड़
(दूरसंचार विभाग ने जुलाई में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर टेलीकॉम कंपनियों पर बकाया लाइसेंस फीस की जानकारी दी थी। कुल 92,641.61 करोड़ रुपए का बकाया बताया गया था।)