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जयपुर

जैसलमेर में जहां जमीन से फूटी थी जलधारा, वहां होगा रिसर्च… ‘डेनमार्क’ करेगा मदद, जानें इसके पीछे का मकसद?

उन इलाकों में सर्वे किया जाएगा, जिनमे कुछ माह पहले जमीन से पानी की धार फूटी थी।

जयपुरMay 18, 2025 / 10:09 am

Lokendra Sainger

विलुप्त सरस्वती नदी के अस्तित्व को तलाशने के लिए सरकार पूरी तरह जुट गई है। उन इलाकों में भी सर्वे होगा, जहां कुछ माह पहले जमीन से पानी की धार फूटी थी। जैसलमेर इसमें मुख्य रूप से फोकस पर है। अन्य क्षेत्रों में भी पैलियो चैनल (प्राचीन नदी का मार्ग) को खोजने का काम होगा। इसके लिए भी डेनमार्क सरकार के एक्सपर्ट्स और केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) का सहयोग लिया जाएगा।
जल संसाधन विभाग के अधिकारियों और विशेषज्ञों का मानना है कि सरस्वती नदी का मार्ग कहीं न कहीं खिसका है और जिन भी इलाकों में जलधारा फूटी है, वहां नदी के चैनल के होने की संभावना है। क्योंकि, दूसरी कोई बड़ी नदी इन इलाकों के आस-पास से नहीं बही। जमीन में से इतना पानी भी तभी निकल सकता है, जब किसी बड़ी नदी का प्रवाह हो रहा हो। हालांकि, अनुसंधान के बाद ही स्थिति साफ होगी।

डीपीआर बनेगी

जैसलमेर में पानी के प्रवाह का पता लगाने और तीन बड़े बांधों में पानी की ज्यादा आवक लाने के मकसद से काम होगा। विभाग स्टडी के लिए डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार करेगा। इसमें मुख्य रूप से गढ़ीसर, बड़ाबाग और अमरसागर, मूलसागर बांध है। इन बांधों में स्वच्छ पानी की आवक कैसे बढ़े। इसके लिए क्या तरीके अपना सकते हैं। पानी की आवक बढ़ती है।

डेनमार्क की मुख्य भूमिका

राइजिंग राजस्थान इन्वेस्टमेंट ग्लोबल समिट में भी जल संसाधन विभाग और डेनमार्क दूतावास के बीच एमओयू हो चुका है। डेनमार्क के एक्सपर्ट सरस्वती पुराप्रवाह (पेलियो चैनल्स) के पुनरुद्धार पर सहयोग करेंगे। दूतावास ने केंद्रीय और राज्य भू-जल विभाग को शामिल करने के लिए कहा है।

इस तरह होगा काम

सरस्वती नदी के पुनरुद्धार के लिए रणनीति तैयार करने में संबंधित सभी विभाग, एजेंसी मिलकर काम करेंगी।

अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण संभावनाओं की खोज।

संभावित पैलियो-चैनलों की पहचान की जाएगी।
रिमोट सेंसिंग और जीआइएस प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए विस्तृत भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण किया जाएगा।

विस्तृत अध्ययन और पुनरुद्धार से जुड़ी प्लानिंग के लिए डीपीआर तैयार होगी।

(पिछले दिनों जयपुर के बिरला विज्ञान अनुसंधान संस्थान में हुई हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की बैठक में यह तय किया गया)

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