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Amnesty scheme: एमनेस्टी योजना और जीएसटी नियमों का हो सरलीकरण

राजस्थान के व्यापारियों ने वित्त मंत्री ( Finance Minister ) से पूर्व बजट में प्रस्तावित एमनेस्टी योजना ( amnesty scheme ) को शीघ्र लाने और जीएसटी नियमों ( GST rules ) में सरलीकरण करने का अनुरोध किया है। व्यापारियों का कहना है कि यह सबसे ज्वलंत मुद्दा है वह है। राज्य के अन्दर आरम्भ होकर राज्य के अन्दर समाप्त होने वाले मालों के परिवहन पर 50 हजार रुपए से अधिक मूल्य के बिलों पर ई-वे बिल ( e-way bill ) लगाना आवश्यक है, जबकि दूसरे राज्य बिहार, महाराष्ट्र में एक लाख मूल्य से अधिक के बिलों पर ही ई-वे ब

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Amnesty scheme: एमनेस्टी योजना और जीएसटी नियमों का हो सरलीकरण

Amnesty scheme: एमनेस्टी योजना और जीएसटी नियमों का हो सरलीकरण

जयपुर। राजस्थान के व्यापारियों ने वित्त मंत्री से पूर्व बजट में प्रस्तावित एमनेस्टी योजना को शीघ्र लाने और जीएसटी नियमों में सरलीकरण करने का अनुरोध किया है। व्यापारियों का कहना है कि यह सबसे ज्वलंत मुद्दा है वह है। राज्य के अन्दर आरम्भ होकर राज्य के अन्दर समाप्त होने वाले मालों के परिवहन पर 50 हजार रुपए से अधिक मूल्य के बिलों पर ई-वे बिल लगाना आवश्यक है, जबकि दूसरे राज्य बिहार, महाराष्ट्र में एक लाख मूल्य से अधिक के बिलों पर ही ई-वे बिल बनाना जरूरी है। अत: अन्य राज्यों की तर्ज पर यहां भी एक लाख रुपए से अधिक के बिलों पर ही ई-वे बिल बनाने कि बाध्यता की जावे।
लेबर वेलफेयर फेस जो 2009 से लागू हुआ है, उसमें ब्याज एवं पेनल्टी लगाने से परेशानी बढ़ी है। लेबर वेलफेयर के कारण उधमियों को काफी नोटिस प्राप्त हो रहे है, जिसमें कानूनी कार्यवाही के नोटिस भी शामिल है, इस पर भी सरकार की ओर से कोई एमनेस्टी स्कीम लाई जाए, जिससे इन उधमियों के नोटिस निकले हुए है वे बिना पेनल्टी व ब्याज के अपने पैसे जमा करवा सके।
फैडरेशन ऑफ राजस्थान ट्रेड एण्ड इंडस्ट्री (फोर्टी) अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने बताया कि जीएसटी में हाल ही में लागू हुए सेक्शन 36(4) को हटाने की मांग की गई है, क्योंकि इस सेक्शन के कारण रिफंड में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, दूसरी पार्टी निश्चित तिथि तक रिटर्न फाइल नहीं करती है, जिसके कारण व्यापारी का पैसा समय पर नहीं मिल पाता है। जीएसटी में रिटर्न भरने के पश्चात रिवाइज करने का प्रावधान नहीं है। सिर्फ वार्षिक रिटर्न में सुविधा है। जीएसटी में रिवाइज करने की सुविधा सभी रिटर्न में दी जाना चाहिए।
सरकार कर जमा नहीं होने या देरी होने पर 18 फीसदी ब्याज लेती है, जबकि कर के रूप में हमारी राशी जमा रहने पर 12 फीसदी ब्याज दरें देय हैं। सरकार द्धारा लेने या देने पर एक समान ब्याज दरें रखनी चाहिए। रिफंड से सम्बन्धित प्रावधानों में जटिल हैं। निर्यातकों को रिफंड में काफी परेशानी हो रही है, हालांकि सरकार द्वारा मैन्यूल रिफंड के प्रावधान किए गए है, लेकिन उक्त में भी स्पष्टता के अभाव में रिफंड समय पर जारी नहीं किए जा रहें हैं। अत: रिफंड प्रावधानों में स्पष्टता की जानी चाहिए तथा रिफंड निर्यातकों व आम व्यापारी को शीघ्रातीशीघ्र एंव निश्चित अवधि में मिल जाए ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।जीएसटी लागू होने के पश्चात राज्य सरकार को भी जीएसटी की आधी राशी एसजीएसटी के रूप में मिल रही है। ऐसी स्थिति में निर्मित भवनों पर जहां जीएसटी लग रही है, उन पर स्टाम्प ड्यूटी की दर 6 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत किया जाना चाहिए तथा सेस को भी इसी में समाहित किया जाना चाहिए।