19 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

JJM Scam Rajasthan: मिलीभगत ने बनाया ‘लालच का मिशन’, ये है घोटाले के 5 ‘धुरंधर’; जांच का दायरा अब और फैलेगा

Rajasthan JJM scam: जल जीवन मिशन भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी पाइपलाइन के रूप में सामने आ रहा है।

2 min read
Google source verification
Jal-Jeevan-Mission-scam-2

जेजेएम घोटाले के पांच 'धुरंधर'। फोटो: पत्रिका

जयपुर। जल जीवन मिशन भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी पाइपलाइन के रूप में सामने आ रहा है। एसीबी की अचानक हुई दबिश में 10 हजार करोड़ से अधिक के टेंडरों और ‘शेड्यूल ऑफ पॉवर एंड प्रोसीजर’ से जुड़े अहम दस्तावेज जब्त किए गए हैं। जांच से फाइल और हकीकत दोनों की तस्दीक होगी।

फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र, टेंडरों की क्लबिंग, ऊंची दरों पर काम और बिना काम भुगतान की परतें एक–एक कर खुल रही हैं। कुछ आरोपियों से उनके ठिकानों की तस्दीक करवाने के साथ नक्शा-मौका की तस्दीक करवाई जाएगी। एसीबी कार्यों की वास्तविक स्थिति, और कागजी रिकॉर्ड के बीच अंतर की भी जांच कर रही है।

एसआइटी ने कहा-शुक्रवार को आएंगे, गुरुवार को ही आ धमकी

एसीबी की एसआइटी ने शुक्रवार को जल भवन आने की सूचना दी थी, लेकिन टीम एक दिन पहले ही गुरुवार सुबह 10.30 बजे जल भवन खुलते ही जेजेएम विंग में पहुंच गई। अचानक हुई इस कार्रवाई से दफ्तरों में अफरा-तफरी मच गई। करीब एक घंटे से ज्यादा चली कार्रवाई में टीम 10 हजार करोड़ के ऊंची दरों पर दिए गए टेंडरों, इरकॉन कंपनी के फर्जी प्रमाण पत्रों से जुड़े 900 करोड़ के टेंडरों, पांच जिलों में बिना काम 50 करोड़ से अधिक भुगतान और ‘शेड्यूल ऑफ पावर एंड प्रोसीजर’ से जुड़े अहम दस्तावेज जब्त कर एसीबी मुख्यालय ले गई। एसआइटी ने एक घंटे से ज्यादा समय जेजेएम विंग में सर्च की कार्रवाई को अंजाम दिया। गौरतलब है कि जल जीवन मिशन घोटाले में जेल में बंद रहे पूर्व जलदाय मंत्री महेश जोशी के जमानत पर बाहर आने के बाद अचानक गतिविधियां बढ़ी हैं।

मिलीभगत ने बनाया ‘लालच का मिशन’

राजस्थान में जल जीवन मिशन 2019 में लॉन्च हुआ। कोरोना काल में काम ठप रहा। 2021 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय रफ्तार पकड़ी। शुरुआत में जिला स्तर पर 2–3 करोड़ की छोटी पेयजल परियोजनाओं के टेंडर होने थे, ताकि स्थानीय जरूरतें तेजी से पूरी हों। आरोप है कि 2022 में इंजीनियरों, फर्मों और आला अफसरों की मिलीभगत से इन छोटे टेंडरों को क्लब कर 200 से 500 करोड़ के बड़े टेंडर बना दिए गए। यहीं से मिशन की दिशा बदली और ‘सेवा’ की जगह ‘सौदेबाजी’ हावी हो गई।

घोटाले के पांच 'धुरंधर'

1. महेश कुमार मित्तल, प्रोपराइटर, गणपति ट्यूबवेल: नेशनल हाईवे पर यूटिलिटी शिफ्टिंग का ठेकेदार था। नलकूप में हल्के पाइप लगाने पर 2007 में गिरफ्तार हुआ था। 2021 में जेजेएम की भूजल आधारित परियोजनाओं को उपखंड स्तर पर क्लब करके टैंडर जारी तब महेश मित्तल ने अपनी फर्म के साथ एंट्री की। मित्तल की फर्म ने 500 करोड़ से ज्यादा के टेंडर इरकॉन कंपनी के फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र तथा टर्न ओवर प्रमाण पत्र लगा कर लिए। मित्तल ने 400 करोड़ से ज्यादा का भुगतान भी उठाया।

2. हेमंत मित्तल: टेंडर लेने के बाद जलदाय विभाग के आला अधिकारियों से मिलीभगत कर टैंडर की ड्रिजाइन व ड्राइंग पास करवाता।

3. उमेश कुमार शर्मा: जलदाय विभाग से रिटायर्ड इंजीनियर है। शर्मा को रिटायरमेंट के बाद पदम जैन की फर्म श्रीश्याम ट्यूबवैल कंपनी में ऑफिस इंजीनियर के तौर पर रखा गया था और अलग-अलग सब डिवीजन में जेजेएम परियोजनाओं में जेईएन व एआईएन की जगह अपने हिसाब से एमबी भरता था।

4. पीयूष जैन: श्री श्याम ट्यूबवैल कंपनी के बैंक, जीएसटी संबधी कार्य करता था।

5. लेखाधिकारी गोपाल कुमावत: वित्तीय सलाहकार केसी कुमावत का तकनीकी सहायक था। गणपति व श्री श्याम ट्यूबवैल कंपनी की ओर से टेंडर लेने के लिए दिए जा रहे फर्जी टर्न ओवर प्रमाण पत्रों की जांच का जिम्मा था। लेकिन एक भी प्रमाण पत्र की जांच नहीं की और टेंडर देने की अनुशंसा करता था। फर्मों व वित्तीय सलहाकार के बीच कमीशन के लेनदेन की मुख्य कडी था।