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ध्यान रखें! जानलेवा न हो जाए हरा चारा

पशुपालन की लागत का साठ फीसदी व्यय पशु के खान-पान पर होता है। पशुपालक अपना खेत पर हरा चारा उगा कर इस व्यय को कम कर सकते हैं। हरे चारे में आवश्यक पौष्टिक होने से यह पशुओं के शारीरिक विकास, प्रजनन एवं दुग्ध उत्पादन में सहायक होता है।

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ध्यान रखें! जानलेवा न हो जाए हरा चारा

Animal food

मुलायम एवं सुपाच्य होने के कारण पशु इसे चाव से खाते हैं। हरा चारा खाने से पशुओं में विटामिन-ए की भी पूर्ति हो जाती है। उन्नत एवं पौष्टिक चारे के बीज कृषि विभाग एवं पशुपालन विभाग भी मिनी किट के रूप में उपलब्ध करवाते हैं। हरा चारा पशुओं के शरीर में पानी की भी पर्याप्त व्यवस्था कर देता है।

पशुओं के लिए पोषक तत्वों से भरपूर हरा चारा इन दिनों जानलेवा साबित हो रहा है। पशुओं को हरा चारा खिलाने से पहले ठीक से जांच लेवें। तेज गर्मी एवं पानी की कमी के कारण अविकसित एवं मुरझाया हुआ चारा कई बार जहरीला साबित हो रहा है। यूरिया उपचारित चारे को खाने से भी पशु बीमार हो रहे हैं।

सायनाइड विषाक्तता: जिस चारे में सायनोजेनिक ग्लुकोसाइड होते हैं, उसमें सायनाइड विषाक्तता पाई जाती है। ग्लुकोसाइड से चारे में मौजूद एंजाइम की क्रिया जहरीला एसिड बनाती है। ऐसे ज्वार, बाजरा एवं चरी जिसकी पत्तियां सूख कर मुरझाने से पीली पड़ जाती हंै, उसमें सायनाइड की मात्रा अधिक होती है।
लक्षण: शरीर में सायनाइड की मात्रा बढऩे से पशु बेचैन रहता है। मुंह से लार निकलती है। सांस लेने में कठिनाई होती है।
यूरिया विषाक्तता: सूखे एवं रेशेदार चारे में कई बार यूरिया की मात्रा अधिक होती है। हरे चारे एवं दाने की कमी के कारण मजबूरी में सूखा चारा ही खिलाना पड़ता है। इससे पशु के शरीर में यूरिया की विषाक्तता बढ़ जाती है।
लक्षण: पशु सुस्त हो जाता है। मुंह से ज्यादा लार टपकती है। आफरा आ जाता है।
नाइट्रेट विषाक्तता: खेत में नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का अधिक उपयोग करने से मक्का, जई एवं सूड़ान घास में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है।
लक्षण: अधिक नाइट्रेट वाला चारा खाने से पशु की सांस एवं नाड़ी दर बढ़ जाती है। रक्त का रंग चॉकलेटी एवं भूरा हो जाता है। इसके लिए सावधानी बरतनी जरूरी है।


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