
अब खेतों में नहीं, प्रयोगशालाओं में उगाई जाएगी हींग
भोजन को स्वादिष्ट बनाने में मसाले के तौर पर तथा विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में दवा के निर्माण के लिए हींग की भारी मांग है लेकिन इसका उत्पादन नहीं के बराबर है। दुनियाभर में पैदा की जाने वाली हींग के 40 प्रतिशत का उपयोग भारत में किया जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की पत्रिका फल-फूल में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार हिमालय जैव सम्पदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर हिमाचल प्रदेश ने ईरान से हींग के पौधे मंगा कर उन्हें लाहौल स्पीति के रिब्लग स्थित अपने केन्द्र में प्रयोग के तौर पर उगाना शुरु किया था। हींग के पौधे को अत्यधिक सर्द तापमान वाले स्थानों में उगाया जाता है जहां तापमान शून्य के नीचे और अधिकतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस हो, उस स्थान को हींग की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।
इसके तहत देश के कई पहाड़ी क्षेत्र उपयुक्त पाए गए हैं। इन स्थानों पर किसान परम्परागत खेती करते हैं जिससे उन्हें काफी कम आमदनी होती है और जंगली जानवर उसे भारी नुकसान पहुंचाते हैं। हींग की खेती अफगानिस्तान, ईरान, इराक, तुर्कमेनिस्तान और पाकिस्तान के बलूचिस्तान में की जाती है। आयुर्वेद और अन्य चिकित्सा पद्धतियों में दवा बनाने के लिए हींग का उपयोग किया जाता है। देश में हींग का बाजार मूल्य करीब 35000 रुपए प्रति किलो है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार हींग दो प्रकार के होती हैं। एक काबुली सफेद (दूधिया सफेद हींग) और दूसरी लाल हींग। इसका तीखा स्वाद इसमें सल्फर की तेज गंध के कारण होता है। यह एक बारहमासी शाक है। इसकी ऊंचाई एक से डेढ़ मीटर होती है। इसके भूमिगत प्रकंदों और ऊपरी जड़ों से शुद्ध वनस्पति दूध रिसता है। हींग का पौधा सौंफ की प्रजाति का ईरानी मूल का है। इसका पौधा सौंफ से बड़ा होता है और टहनियों के अंत में पीले रंग का फूल गुच्छों में लगता है। इस पौधे की जड़ में चीरा लगाने पर दूध निकलता है जो सूख कर गोंद जैसा हो जाता है। यही हींग है। एक पौधे से 100 ग्राम से 300 ग्राम तक हींग निकलती है। हींग एंटीऑक्सिडेंट होता है जो संक्रमण और दर्द जैसी कई बीमारियों में राहत पहुंचाता है। हींग के सेवन से पाचनतंत्र मजबूत होता है और पेट दर्द में आराम मिलता है।
Published on:
10 Jul 2020 07:48 pm
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