
जयपुर। उपराष्ट्रपति एम.़वेंकैया नायडू ने कहा है कि राजनीति में कास्ट, कम्युनिटी और कैश के शॉर्टकट अपनाने वाले थोड़े समय के लिए ही चल पाते हैं। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने अखबार बांटे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी चाय बेची और पीएम बने। वह खुद भी किसान हैं। एक-एक पायदान चढ़ कर यहां पहुंचे हैं।
उपराष्ट्रपति ने शनिवार को एमएनआईटी के दीक्षांत समारोह को सम्बोधित करते हुए केन्द्र सरकार के कदमों की जमकर तारीफ की। उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी को 'शॉर्ट टर्म पेन्स फॉर लांग टर्म गेन्सÓ की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और सरकार के सुधारवादी कदमों से देश एक बार फिर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। विश्व बैंक, एडीबी और आईएमएफ जैसी संस्थाओं ने इसे माना है। उन्होंने विद्यार्थियों को पांच सूत्रीय गुरुमंत्र देते हुए कहा कि अपनी मां, मातृभूमि, मातृभाषा, संस्कृति और गुरु को हमेशा याद रखना चाहिए। मां शब्द में आवाज अंदर से आती है और गूगल कभी भी गुरू का विकल्प नहीं हो सकता। विद्यार्थियों को हमेशा सीखते रहना चाहिए, क्योंकि शिक्षा में सिर्फ कोमा होते हैं, फुलस्टॉप कभी नहीं होता। उपराष्ट्रपति ने यहां सत्र 2016-17 के दौरान 35 टॉपरों को स्वर्ण पदक और 57 छात्रों को पीएचडी की डिग्री प्रदान की। समारोह में कुल 1098 डिग्रियां अवार्ड की गईं। कार्यक्रम में एमएनआईटी के बोर्ड ऑफ गवर्नर अध्यक्ष चित्रा रामकृष्ण और निदेशक उदयकुमार आर.़यारागट्टी ने संस्थान के कार्यकलाप और उपलब्धियों की जानकारी दी।
मैकाले शिक्षा व्यवस्था से खोया आत्मविश्वास
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मुगल और अंग्रेजों से पहले भारत की अर्थव्यवस्था विश्व के सकल घरेलू उत्पाद की २७ प्रतिशत थी। लेकिन अंग्रेज जाते जाते हमारे यहां मैकाले की शिक्षा व्यवस्था छोड़ गए। इससे हमने आत्मविश्वास खो दिया। अब फिर से जाकर भारत प्रगति पर है और पूरा विश्व हमारी ओर देख रहा है।
बैडरूम, बाथरूम से निकला पैसा
नोटबंदी और जीएसटी की बात करते हुए उन्होंने कहा कि इन फैसलों से बैडरूम, बाथरूम और तकियों से पैसा निकल कर बैंकों में पहुंच गया। जीएसटी विश्व में सबसे क्रान्तिकारी सुधार था। उन्होंने विदेश जाने की इच्छा रखने वाले युवाओं से 'लर्न, अर्न एंड रिटर्नÓ की नीति अपनाने का आह्वान किया।
उत्तर-दक्षिण सीखे एक-दूजे की भाषा
उपराष्ट्रपति ने यहां उत्तर और दक्षिण के लोगों से एक दूसरे की भाषा सीखने पर जोर दिया। इससे एक दूसरे के बारे में समझ बढ़ेगी और विरोधाभास कम होगा। एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक बार वह खुद भी हिन्दी विरोधी मुहिम में शामिल हो गए थे, लेकिन दिल्ली आकर आंखें खुल गई।
Published on:
06 Jan 2018 09:47 pm
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