
23 अगस्त को 18.04 बजे, भारत और इसकी विशिष्ट अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी, इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने इतिहास रचा। बहुप्रतीक्षित चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतर गया है। भारत न केवल चंद्रमा पर उतरने वाला दुनिया का चौथा देश है, बल्कि चंद्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला देश भी है। इसरो और विजयी मिशन के पीछे हमारे वैज्ञानिकों का बहुत बड़ा हाथ है। 23 अगस्त का दिन इतिहास में भारत और वैज्ञानिक समुदाय के लिए सबसे गौरवपूर्ण दिनों में से एक के रूप में दर्ज कि या जाएगा।
इस मिशन को कामयाब बनाने में जितनी मेहनत पुरुष वैज्ञानिकों की, उतनी ही मेहनत महिला वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 की सफलता में योगदान दिया है। उनके समर्पण, कड़ी मेहनत और विशेषज्ञता ने भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चंद्रयान मिशन श्रृंखला के हिस्से के रूप में चंद्रयान-3, अंतरिक्ष अन्वेषण में वैज्ञानिक खोज और तकनीकी नवाचार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है।
इन महिला वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का योगदान एसटीईएम क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा की जा रही प्रगति का उदाहरण है, जो भावी पीढिय़ों को अपने जुनून और सपनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है। उनकी उपलब्धियां न केवल अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाती हैं बल्कि वैज्ञानिक समुदाय में विविधता और समावेशन के महत्व की याद भी दिलाती हैं।
ये महिलाएं हमारे आस-पास की सामान्य महिलाओं की तरह ही हैं, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और कुछ असाधारण हासिल करने की इच्छा ने उन्हें महान ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया हैैं। इन वैज्ञानिकों के अलावा राजस्थान की बेटियों ने भी चंद्रयान-3 की सफलता में भी अहम योगदान दिया है। आइए इन प्रतिभाशाली व्यक्तियों और पूरी इसरो टीम की उनकी उपलब्धियों और अपने देश और वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय को गौरवान्वित करने के लिए सराहना करें!
चंद्रयान-3 की सफलता के पीछे इन महिलाओं का हाथ
-रितु करिधल वरिष्ठ वैज्ञानिक, इसरो
रितु चंद्रयाप-3 मिशन की निदेशक हैं। वह 2014 के मार्स ऑर्बिटर मिशन की उप परिचालन निदेशक भी थीं। इन्हें 'इंडियन रॉकेट वुमन' के नाम से भी जानी जाती हैं। वह घर के साथ-साथ इसरो की जिम्मेदारियां बखूभी निभा रही हैं। उनकी मल्टीटास्किंग क्षमताएं सराहनीय हैं और उन्होंने एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक के रूप में कई शोध पत्र लिखे हैं।
-अनुराधा टी.के.
उन्हें वर्ष 2011 में जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी)-2 के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने 20 सदस्यों के एक समूह का नेतृत्व किया और कई तकनीकी सफलताएं हासिल कीं। अनुराधा अपनी तार्किक सोच से इसरो की अन्य महिला कर्मचारियों के लिए प्रेरणा बन गईं। उन्हें सुमन शर्मा पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुआ है।
-एन. वलारमाथी
वलारमथी ने स्वदेशी इमेजिंग उपग्रह (आरआईएसएटी) मिशन के प्रमुख के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट मिशन के प्रमुख होने का रिकॉर्ड अपने नाम कि या है।
-मंगला मणि
56 वर्षीय मंगला मणि 2016 में अंटार्कटिका में 23 सदस्यीय भारतीय अनुसंधान दल का हिस्सा थीं। वह टीम में एकमात्र महिला थीं और उन्होंने अद्वितीय चुनौतियों का सामना करते हुए 403 से अधिक दिन वहां बिताए।
-मौमिता दत्ता
कोलकाता विश्वविद्यालय से प्रायोगिक भौतिकी में एम.टेक स्नातक मौमिता दत्ता ने मंगलयान मिशन के लिए एक परियोजना प्रबंधक के रूप में काम किया और 'मेक इन इंडिया' अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया।
-नंदिनी हरिनाथ
नंदिनी ने कम उम्र में वैज्ञानिक बनने के अपने सपने को साकार किया और उन्होंने इसरो के साथ अपना कॅरियर शुरू किया। उन्होंने इसरो के उप निदेशक के रूप में कार्य किया और मंगलयान मिशन में सक्रिय रहे।
-मीनाक्षी संपूर्णेश्वरी इसरो सिस्टम इंजीनियर के रूप में मीनाक्षी संपूर्णेश्वरी ने लगभग 500 वैज्ञानिकों की एक टीम का नेतृत्व किया है। मंगलयान मिशन की सफलता के बाद उनका नाम सबसे आगे आया।
-कीर्ति फौजदार
कीर्ति फौजदार, इसरो में एक कंप्यूटर वैज्ञानिक के रूप में जानी जाती हैं। वह उपग्रहों को उनकी सही कक्षाओं में स्थापित करने में माहिर हैं और उस टीम का हिस्सा हैं जो उपग्रहों और अन्य मिशनों पर कड़ी नजर रखती है।
-टेसी थॉमस
टेसी थॉमस ने अग्नि 4 और अग्नि 5 मिसाइलों की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह इसरो के लिए नहीं बल्कि डीआरडीओ के लिए काम करती हैं। उनके योगदान ने भारत को आईसीबीएम वाले देशों में एक विशेष स्थान दिलाया और टेसी को अक्सर 'अग्नि पुत्री' (अग्नि की बेटी) कहा जाता है।
-नेहा गौड़
उदयपुर की नेहा गौड़ ने भी मिशन में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने अहमदाबाद के इसरो केंद्र से टीम के साथ इस मिशन के लिए अहम योगदान दिया। पिछले 18 साल से इसरो में कार्यरत नेहा अहमदाबाद केंद्र में शिफ्ट होने से पहले बेंगलूरु कार्यालय में कार्यरत थी। यहां वह सीनियर सीनियर साइंटिस्ट व बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में काम कर रही हैं।
-सुष्मिता चौधरी
फोटो: सुष्मिता चौधरी और सुनीता खोकर
कोटा की रहने वाली सुष्मिता चौधरी ने चंद्रयान-3 लॉन्च व्हीकल की ट्रेजेक्टरी की डिजाइन करने वाली टीम में अहम भूमिका निभाई है। सुष्मिता वर्तमाान में इसरो में एसडी लेवल 11 की वैज्ञानिक हैं।
-सुनीता खोकर
डीडवाना-कुचामन जिले के गांव डाकीपुरा की रहने वाली सुनीता खोकर भी इसरो में वैज्ञानिक के तौर पर काम कर रही हैं। वह भी चंद्रयान-3 टीम का एक अहम हिस्सा हैं। वह लैंडर के सेंसर बनाने वाली टीम का हिस्सा थीं।
Published on:
26 Aug 2023 08:31 pm
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