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कोचिंग ने लोन दे दिया, अब पढ़ाई में पिछड़ गया, समझ नहीं आ रहा.. क्या करूं

आत्महत्याएं बढ़ने के बाद शुरू की नि:शुल्क हेल्पलाइन...जयपुर, सीकर और कोटा के कोचिंग छात्र और अभिभावक बता रहे आपबीती

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जयपुर

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Shipra Gupta

Sep 02, 2023

विजय शर्मा

जयपुर। हेलो सर..मैं कोचिंग कर रहा हूं…परिवार की िस्थति ठीक नहीं है..10वीं में अच्छा परिणाम आया तो नीट के फाउंडेशन की तैयारी करने आ गया। कोचिंग ने एडमिशन के लिए लोन भी दे दिया..मैं दोस्तों से पिछड़ रहा हूं..परेशान हो गया..समझ नहीं आ रहा क्या करूं। यह पीड़ा किसी एक छात्र ही नहीं, कोचिंग कर रहे सैकड़ों छात्रों की है। राज्य में आए दिन कोचिंग छात्रों के आत्महत्या के केस सामने आने के बाद मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और जयपुर के अग्रवाल फॉर्म निवासी विनीत सोनी ने नि:शुल्क हेल्पलाइन शुरू की है, जहां कोचिंग छात्र अपनी पीड़ा बयां कर रहे हैं।

प्रोफेसर रोज शाम को तीन घंटे न केवल छात्रों की परेशानी सुन रहे हैं, बल्कि उन्हें परामर्श भी दे रहे हैं। पिछले एक महीने के दौरान जयपुर, सीकर और कोटा से सैकड़ों कॉल छात्र और अभिभावकों के आए हैं। रोज औसत तीन से पांच कॉल आ रहे हैं।

छात्र बता रहे इस तरह की समस्या

– सुबह से शाम कक्षाएं लगती हैं, समय नहीं निकाल पाता
– कोचिंग लोन की सुविधा देते हैं पढ़ाई नहीं कर पा रहा लोन कैसे पूरा होगा
– नौवीं कक्षा में गाइड करने वाला कोई नहीं था, कोचिंग करने आ गया
– कोचिंग टेस्ट में अच्छे रिजल्ट नहीं आ रहे हैं
– कोचिंग में परफॉर्मेंस के आधार पर ग्रुप बांट दिए, मैं दोस्तों से पिछड़ गया हूं

ये कारण सामने आ रहे डिप्रेशन के

एकेडमिक: 11 वीं कक्षा से ही फाउंडेशन कोर्स में बच्चे का एडमिशन कोचिंग इंस्टीट्यूट में करा दिया जाता है। बच्चे को 6 से 7 घंटे स्कूल में रहकर वापस लगभग 4 या 5 घंटे की कोचिंग में जाना पढ़ता है।

मार्गदर्शन की कमी: स्कूल और कोचिंग में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को इंजीनियरिंग- मेडिकल के बारे में ही पता होता है। कोचिंग के दौरान जब उन्हें लगता है कि वे इस परीक्षा को पास नही कर पाएंगे तो उन्हें जीवन अंधकार में लगता है।

आर्थिक कारण: कोचिंग की फीस अधिक होती है। आर्थिक िस्थति ठीक नहीं होने पर अभिभावक बैंक या कोचिंग के जरिए ही लोन लेकर फीस भरते हैं। इसका बच्चों पर मानसिक दबाव रहता है।

फिजिकल और साइकोलॉजिकल: अधिकांश छात्रों की उम्र 15 से 20 साल होती है। कोचिंग और और वहा के माहोल से बच्चे पर मेडिकल या इंजीनियरिंग एग्जाम पास करने का दबाव हमेशा बना रहता है।

टॉपिक एक्सपर्ट : विज्ञान में ही संभावनाएं, यह गलतफहमी दूर हो

प्रो. विनीत सोनी, विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान, मोहनलाल सुखाडिया विवि

कोचिंग में नियमित टेस्ट के आधार पर बच्चों के मानसिक स्तर के आधार पर ग्रुप बना दिए जाते हैं। कम अंक लाने वाले बच्चे अवसाद और तनाव का शिकार हो जाते हैं। परिवार वालों के कहने पर उन्होंने कॅरियर का निर्णय ले लिया। लेकिन अब वे पढ़ाई को पूरी नहीं कर पा रहे। 9वीं और 10वीं कक्षा में माता-पिता को गहनता से विश्लेषण करना चाहिए कि बच्चे किस क्षेत्र और विषय में भविष्य बना सकते हैं। बच्चों के दिमाग से यह गलतफहमी निकलनी चाहिये कि विज्ञान विषय में ज्यादा संभावनाएं हैं।