
सावन में पांच फुट के चमत्कारी शिवलिंग का जलाभिषेक नहीं कर पाएंगे भक्त
कोरोना वायरस फैलने के कारण श्रावण मास में मंदिर के कपाट बंद है और परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ हैं। मंदिर के महंत राम मनोहर तिवारी के अनुसार द्वापर युग के महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान महाबली भीम ने धरती से करीब 54 फीट नीचे से छह अर्धाओ का निर्माण कर अर्धा पर ही भव्य मंदिर का निर्माण कर शिव आराधना की थी लेकिन कालान्तर में ये शिवलिंग पूरी तरह धरती में समा गया। किवदंतियों के अनुसार इसी क्षेत्र का निवासी पृथ्वी नामक एक किसान अपना घऱ बनवाने के लिये गड्ढा खुदवा रहा था कि शिवलिंग वाले स्थान के ऊपर की धरती से अचानक रक्त की फुहार निकलने लगी जिसे देख पृथ्वी अचम्भित रह गया। रात्रि में उसे स्वप्न में जमीन के नीचे शिवलिंग होने का आभास हुआ। भोर होते ही पृथ्वी ने सारी बात खरगूपुर के राजा गुमान सिंह को बतायी। राजा ने जमीन की खुदाई करवाकर शिवलिंग के अर्धाओ पर विशाल मंदिर का निर्माण कराया और तभी से इस दिव्य पौराणिक मंदिर को पृथ्वीनाथ मंदिर के नाम से पुकारा जाने लगा। एशिया का अनूठा मंदिर वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण है। पृथ्वीनाथ को 'लिंगम' कहा जाता है। मंदिर में आने के बाद सभी भक्तो को शांति मिलती हैं। शिवमंदिर के केवल दर्शनमात्र सभी पीड़ितों के क्लेश दूर हो जाते हैं। भक्तों का विश्वास इस स्थान के महत्व को दर्शाता है। श्रावण मास में शिव भक्त अयोध्या धाम व कर्नलगंज में बह रही सरयू नदी से जल भरकर बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थित विशाल शिवलिंग पर ऐड़ी के बल चढ़ाते है। इसके अलावा दूर दराज से आये लाखों महिला एवं पुरुष श्रद्धालु बेलपत्र, धतूरा, भांग, कमल, भस्म, दुग्ध, मधु, चन्दन व अन्य पूजन सामग्रियों से भोलेनाथ का अभिषेक कर उन्हें प्रसन्न करके मनोकामना मांगते है।
Published on:
12 Jul 2020 08:34 pm
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