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Lakshmi Mata Mandir: ये हैं मां लक्ष्मी के प्राचीन मंदिर, दिवाली के मौके पर करें दर्शन, बरसेगी कृपा

Diwali 2023: गुलाबीनगरी के हर चौराहे- सड़कों पर कोई न कोई प्राचीन मंदिर हैं, जिसमें लोगों की खूब आस्था है इसलिए ही जयपुर को छोटी काशी कहा जाता है।

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जयपुर

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Nupur Sharma

Nov 12, 2023

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Lakshmi Mata Mandir: गुलाबीनगरी के हर चौराहे- सड़कों पर कोई न कोई प्राचीन मंदिर हैं, जिसमें लोगों की खूब आस्था है इसलिए ही जयपुर को छोटी काशी कहा जाता है। ऐसे ही शहर के प्राचीन महालक्ष्मी मंदिरों की देशभर में विशेष मान्यता है। मां की प्रतिमा विशेष रूप में होने से हर साल दिवाली पर सुबह से लेकर रात तक यहां बड़ी संख्या में भक्तों का तांता लगता है। दिवाली पर अभिषेक के साथ ही पूजा अर्चना के बाद महिलाओं को सुहाग की 16 सामग्रियां भी भेंट की जाती है। शहर स्थापना से पहले और कई मंदिर स्थापना के बाद आज भी जन—जन की आस्था के प्रतीक हैं।

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यहां बगैर विष्णु जी महालक्ष्मी विराजमान
सांगानेरी गेट आगरा रोड पर स्थित यह मंदिर करीब 150 से अधिक साल पुराना है। यहां बगैर विष्णु जी के अकेली महालक्ष्मी ही विराजमान हैं। प्रतिमा गज लक्ष्मी के रूप में विराजित है जिसके दोनों ओर हाथी हैं और लक्ष्मी जी भी हाथी पर ही विराजमान हैं। 1865 में जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय के शासनकाल में निर्माण माली ब्राह्मण समाज की एक महिला ने करवाया था, जिन्होंने मंदिर निर्माण के लिए अपने सभी आभूषण और संपत्ति दान कर दी। श्रीमाली ब्राह्मण महालक्ष्मी को कुलदेवी मानते हैं, यहां सेवा पूजा भी इसी समाज के ब्राह्मण करते हैं। महालक्ष्मी के पूजन के लिए मंदिर का निर्माण करवाया। अविवाहित लड़कियों के मां लक्ष्मी के पूजन से शादी भी जल्दी होती है।

मां लक्ष्मी समुद्रतल से निकले कमलासन पर विराजमान
चांदी की टकसाल हवामहल बाजार स्थित माता महालक्ष्मी मंदिर में विराजमान महालक्ष्मी जी प्रतिमा लगभग 1100 साल पुरानी है, और यह प्रतिमा माणक पत्थर पर बनी हैं। मां की प्रतिमा को मणिमंडप का स्वरूप देने के साथ ही मां समुद्रतल से निकले कमलासन पर गज लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं। आमेर रियासत के राजघराने ने जयपुर बसाने के लिए सबसे पहले एक टकसाल का निर्माण किया, जिसके लिए महालक्ष्मी का आव्हान कर माता महालक्ष्मी मूर्ति स्थापित की। टकसाल में सोने एवं चांदी के सिक्के और मोहर बनाई जाती थी। माता का मंदिर टकसाल के दरवाजे के ऊपर बना हुआ है। मंदिर महंत राजेंद्र कुमार शर्मा के मुताबिक हर शुक्रवार को शाम में माता की महाआरती होती है। हर माह पुष्य नक्षत्र पर माता महालक्ष्मी का विशेष अभिषेक, पूजा, अनुष्ठान किया जाता था एवं माता का दरबार गज लक्ष्मी के रूप में विराजमान है।

विदेशी पर्यटक भी मुरीद
बड़ी चौपड़ सर्किल पर स्थित लक्ष्मीनारायण जी (बाईजी) का मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 1794 में जयसिंह सिंह की पुत्री विचित्र कुमारी ने करवाया। यह मंदिर भव्य रूप में सर्किल के कौने में बना हुआ हैं जिसकी सुंदरता दूर से ही नजर आती है। स्थानीय लोगों के अलावा विदेशी पर्यटकों खूब आते है। यहां प्रतिमा नारायण के हदय से देखती हुई लक्ष्मी माता विराजमान है और लक्ष्मीनारायण भगवान गरूड पर विराजमान है। प्रतिमा काले पाषाण के एक ही पत्थर पर निर्मित है। वर्तमान में यह मंदिर देवस्थान विभाग के अधीन हैं। मंदिर में महालक्ष्मी का अति दुर्लभ व विलक्षण विग्रह एक ही शिला पर बनाया गया। इसमें भगवान लक्ष्मीनारायण के वाम भाग में महालक्ष्मी जी विराजमान है। गरुड़ देवता के अलावा जय विजय नामक द्वारपाल भी मंदिर की रक्षा के लिए खड़े हैं। दिवाली पर श्री यंत्र की विशेष पूजा होती है।

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सवामण दूध से होगा अभिषेक
शहर बसने के समय का लगभग 250 साल से अधिक साल पुराना महालक्ष्मी मंदिर नाहरगढ़ रोड पर स्थित लाल हाथियों के मंदिर के पास स्थित है। यह प्रतिमा एक पाषण से बनी है, जगत जननी राजराजेश्वरी माता के इस प्रकार के एकल विग्रह की पूजा आराधना का विशेष फल है। एक शिला से निर्मित मां लक्ष्मी की प्रतिमा हाथी पर विराजमान हैं। मां के चार हाथों में से दो हाथों में कमल फूल, एक हाथ में वेद के अलावा हाथी कलशों से माता का अभिषेक कर रहे हैं।युवाचार्य पं. धर्मेश शर्मा ने बताया कि दिवाली पर सवामण दूध से अभिषेक होगा, 16 श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाएगी। दिनभर भक्तों का दर्शनों के लिए तांता नजर आएगा।