गंगा सहित प्रदेश-देश की नदियों में अस्थि विसर्जन व पितृ तर्पण की परपंरा
जयपुर। पितृपक्ष के दौरान प्रदेश सहित देश की विभिन्न नदियों तथा बिहार स्थित गया में तर्पण का सिलसिला जारी है। मान्यता है कि पितरों को मुक्ति प्रदान करने के लिए श्राद्ध पक्ष में तर्पण किया जाता है। यमराज ने पितरों के आग्रह पर 15 दिन का पखवाड़ा नियत किया है। इस दौरान पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण, दान पुण्य और अनुष्ठान किए जाते हैं।
इसमें अश्वनी मास की प्रथम तिथि से अमावस्या तक यह पखवाड़ा मनाया जाता है। 15 दिन जल, तिल और जौ से तर्पण करने पर व्यक्ति को पिता, पितरों का भरपूर आशीर्वाद मिलता है।
ज्योतिषाचार्य पं.दामोदर प्रसाद शर्मा व पं. पुरुषोत्तम गौड़ ने बताया कि गंगा नदी सहित प्रदेश और देश की कई प्रमुख नदियों में अस्थि विसर्जन की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। हर नदी में अस्थि विसर्जन व तर्पण का विशेष महत्व है। जयपुर के तीन दर्जन से अधिक विद्वान पितृ पक्ष में प्रमुख तीर्थों पर अनुष्ठान करवा रहे हैं। ज्योर्तिविद पं.घनश्याम लाल स्वर्णकार ने बताया कि इन जीवनदायिनी नदियों में तर्पण से जहां पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हो रही है। आजीवन पूर्वजों का भी आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है।
प्रदेश में प्रमुख स्थान
पुष्कर : अधिकतर लोग हरिद्वार आदि तीर्थ में अस्थि विसर्जन के बाद पुष्कर में आकर पिण्डदान करते हैं।
बेणेश्वर धाम : डूंगरपुर में सोम-माही नदियों के संगम पर स्थित यह धाम अस्थि विजर्सन और पितृ तर्पण की दृष्टि से काफी पवित्र माना जाता है। यहां पूर्णिमा सहित वर्ष पर्यन्त श्रद्धालु अस्थि विसर्जन और तर्पण के लिए आते हैं। इसे वागड़ क्षेत्र की गंगा भी कहा जाता है।
लोहार्गल (सीकर) : लोहार्गल में शिव मंदिर तथा सूर्य मंदिर के बीच स्थित सूरजकुंड में पांडवों ने अपने पितरों के लिए मुक्ति कार्य करवाया था। यहां तीन पर्वत से निकलने वाली सात धाराएं हैं।
गया, बिहार
यहां बहने वाली फलगू नदी में तर्पण व अनुष्ठान के बाद पितृगण अक्षय लोक को प्राप्त करते हैं। अकाल मृत्यु वालों के लिए यह जगह सबसे उपयुक्त है।
शिप्रा नदी, उज्जैन : भगवान राम ने पिता दशरथ और मां कौशल्या का तर्पण इसी नदी पर किया था। जिस जगह भगवान ने पूर्वजों का श्राद्ध-तर्पण किया था, तभी से इस घाट का नाम राम घाट पड़ गया।
गंगा नदी
हरिद्वार और प्रयागराज में श्राद्ध एवं पितृ तर्पण करने से बहुत अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
मणिकर्णिका घाट काशी : यह पुरी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है। शास्त्रों-विद्वानों के अनुसार प्रलय में इसका नाश नहीं होता है।
सरयू नदी : अयोध्या को सात पुरियों में से प्रथम पुरी माना गया है। यहां सरयू नदी में पितृ तर्पण एवं श्राद्ध से पितृ तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।