
फाइल फोटो- पत्रिका
जयपुर। 56 दुर्लभ और जानलेवा बीमारियों से जूझ रहे बच्चों को समय पर जीवनरक्षक इलाज उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई मुख्यमंत्री आयुष्मान बाल संबल योजना-2024 एक वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद भी क्रियान्वयन का इंतजार कर रही है। जिन मासूमों के लिए यह योजना जीवनरेखा बननी थी, वे आज भी इलाज, संसाधनों और स्पष्ट व्यवस्था के अभाव में अस्पतालों और घरों के बीच भटक रहे हैं।
योजना के तहत दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों को 50 लाख रुपए तक का निशुल्क उपचार देने का वादा किया गया था। पात्रता, ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया और नामित निदान केंद्र भी तय किए गए, लेकिन घोषणा और अमल के बीच की खाई ने इस महत्वाकांक्षी योजना को फिलहाल कागजों तक सीमित कर दिया है। इलाज में देरी खतरे को कई गुना बढ़ा देती है। कुछ मामलों में उपचार चक्र छूटना ही आजीवन विकलांगता या मृत्यु का कारण बन सकता है।
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दुर्लभ बीमारियों का इलाज सालाना 20 लाख से 2 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। योजना लागू न होने के कारण कई परिवार अपनी जीवनभर की बचत खर्च कर चुके हैं, कर्ज में डूब रहे हैं या मजबूरी में इलाज रोकने को विवश हैं। बच्चों से जुड़ी स्वास्थ्य आपात स्थितियों में सार्वजनिक वादों पर भरोसा टूटना राजस्थान की कल्याणकारी छवि पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
रेयर डिजीज इंडिया फाउंडेशन के सह-संस्थापक सौरभ सिंह का कहना है कि जीवन बचाने के उद्देश्य से घोषित इस योजना को यदि शीघ्र लागू नहीं किया गया, तो यह बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है।
Published on:
17 Dec 2025 06:31 pm
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