
जयपुरिया अस्पताल में ड्यूटी टाइम में भी डॉक्टर नदारद
सविता व्यास
जयपुर। मौसमी बीमारियों का कहर बरकरार है, लेकिन राजधानी के जयपुरिया अस्पताल में डॉक्टरों की 'मौज' हो रही है। अस्पताल के आउटडोर में रोजाना सैकड़ों की संख्या में मरीज पहुंचते हैं, लेकिन इनके मर्ज का इलाज करने वाले ही 'गायब' हैं। दरअसल, वीकेंड में सरकारी अवकाश पर अस्पताल में डॉक्टर्स की संख्या भी आधी रह जाती हैं। डॉक्टर्स की इस मनमर्जी का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर जयपुरिया अस्पताल में सुविधाएं उपलब्ध करा रही हैं। इसके बाद भी मरीजों को इलाज के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है।
डॉक्टर्स की लेटलतीफी पड़ रही भारी
अस्पताल में सुबह 9 बजे से तीन बजे का टाइम निर्धारित है। इसके बाद भी साढ़े 9 बजे तक अधिकांश चेंबर्स में डॉक्टर्स नहीं पहुंचते हैं। यह बात अलग है कि इससे पहले ही डॉक्टर्स के चेंबर के बाहर कतार लगना शुरू हो जाती है। वहीं डॉक्टर्स के अवकाश पर होने से मरीजों की पीड़ा दोगुनी हो जाती है। मरीजों का आरोप है कि सरकारी अवकाश के दूसरे दिन वर्किंग डे पर सबसे खराब हालात होते हैं। अधिकांश डॉक्टर्स गायब रहते हैं। कर्मचारियों से पूछताछ करने पर वे भी चुप्पी साधकर खिसक जाते हैं। वहीं अस्पताल प्रशासन वैकल्पिक व्यवस्था तक नहीं करता है।
कतारों की पीड़ा झेलने की मजबूरी
अस्पताल में पहले पर्ची कटवाने के लिए मरीजों को कतार में लगना पड़ता है। इसके बाद रजिस्ट्रेशन, बीपी-शुगर जांच व डॉक्टर्स से परामर्श के लिए करीबन एक घंटे कतारों की पीड़ा झेलनी पड़ती है। इस दौरान कई बुजुर्ग मरीज तो फर्श पर ही बैठ जाते हैं। इसके बाद भी डॉक्टर्स मिलने की कोई गारंटी नहीं है। बीच में ही डॉक्टर्स साहब चैंबर छोड़कर बाहर निकल जाते हैं। वहीं मरीज बाहर खड़े होकर डॉक्टर्स का इंतजार करते रहते हैं।
शिकायत फिर भी सुनिवाई नहीं
जयपुरिया अस्पताल में इलाज कराने आई महिला मरीज ममता ने बताया कि सुबह दस बजे से कतार में लगी हैं। दो घंटे के बाद भी डॉक्टर से परामर्श का नंबर नहीं आया है। ऐसे में विरोध करने पर विवाद की स्थिति भी बन जाती है। अस्पताल प्रबंधन से शिकायत करने के बाद भी कोई समाधान नहीं निकल रहा है।
अधिकांश दवाइयां उपलब्ध नहीं
सरकारी अस्पतालों में निशुल्क दवा योजना संचालित हो रही है। इसके बाद भी दवा काउंटर पर अधिकांश दवाइयां उपलब्ध ही नहीं होती हैं। लंबी कतारों में लगने के बाद जब मरीज का नंबर आता है तो पर्ची में लिखी दवाइयों में से अधिकांश दवाइयां मिलती ही नहीं है। मरीजों को मजबूरन बाहर से खरीदना पड़ता है। वहीं, मेडिकल जांच करवानेे से पहले भी कतार में लगना पड़ता है। ऐसे में मरीजों की हालत बिगड़ना तय है।
Published on:
28 Mar 2025 01:58 pm
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