
सांभर की गलियों में लगे पोस्टर, फोटो- पत्रिका नेटवर्क
Migration of People in Sambhar: जयपुर से मात्र 80 किलोमीटर दूर राजस्थान के सांभर झील कस्बे में पानी की समस्या ने अब विकराल रूप ले लिया है। कभी खारे पानी की सबसे बड़ी झील के लिए प्रसिद्ध यह इलाका अब प्यास, पलायन और प्रशासनिक उदासीनता की त्रासदी का पर्याय बन गया है।
सांभर के कई मोहल्लों में पानी की किल्लत इतनी गंभीर हो गई है कि लोग अपनी पुश्तैनी हवेलियां और लाखों के मकान बेचकर पलायन करने को मजबूर हैं। चारभुजा मंदिर की गली, जोशियों की गली, लक्ष्मीनारायण मंदिर की गली और चौधरियों की गली जैसे क्षेत्रों में हालात बद से बदतर हैं। स्थानीय लोगों ने सामूहिक रूप से पलायन का फैसला लिया है, जिसकी गवाही गलियों में लगे 'मकान बिकाऊ' और 'पानी के लिए पलायन' के पोस्टर दे रहे हैं।
बता दें, सांभर के वार्ड 22 और 23 सबसे अधिक प्रभावित हैं, जहां जलदाय विभाग की ओर से 72 से 96 घंटों में केवल 25-30 मिनट की जलापूर्ति होती है। कई घरों में तो एक बाल्टी पानी भी नसीब नहीं होता। स्थानीय निवासी जगदीश बोहरा बताते हैं कि पानी का कोई निश्चित समय नहीं है, जिससे बच्चों की पढ़ाई और रोजमर्रा के काम प्रभावित हो रहे हैं।
वहीं, व्यवसायी पराग पोद्दार, जिनकी 250 साल पुरानी हवेली है और ज्वैलर ललित सोनी जैसे लोग भी पानी की कमी के चलते अपने घर छोड़ने पर विचार कर रहे हैं।
स्थानीय लोगों ने जलदाय विभाग के अधिकारियों को बार-बार समस्या से अवगत कराया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। विभाग के अधिकारी फोन पर उचित जवाब तक नहीं देते। यहां के निवासियों का मानना है कि यह पानी की नहीं, बल्कि प्रशासन की इच्छाशक्ति की कमी है। कुछ मोहल्लों में नियमित जलापूर्ति हो रही है, जबकि अन्य क्षेत्र प्यासे हैं।
जलदाय विभाग का बिल हर महीने समय पर आता है, लेकिन नल सूखे रहते हैं। कई गलियों में टैंकरों की पहुंच भी संभव नहीं है, जिसके चलते लोग आधा किलोमीटर दूर से पानी ढोने को मजबूर हैं। सांभर में पानी की टंकी की स्वीकृति सालों पहले मिल चुकी है, लेकिन निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ। सरकारी फाइलों में योजनाएं मंजूर होती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत वही ढाक के तीन पात है।
स्थानीय लोगों ने फुलेरा विधायक विद्याधर चौधरी ने सरकार पर सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया, जबकि पूर्व विधायक निर्मल कुमावत ने अमृत योजना के तहत टेंडर होने की बात कही, लेकिन तकनीकी अड़चनों का हवाला दिया।
गौरतलब है कि सांभर को सरकार पर्यटन हब बनाने की बात करती है, लेकिन वहां के लोग जीने के लिए कस्बा छोड़ रहे हैं। पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते लोग, सूखे नल और खाली घड़े अब इस कस्बे की पहचान बन गए हैं। यह राजधानी के नजदीक होने के बावजूद एक ऐसी जल-त्रासदी है, जहां विकास के दावे खोखले साबित हो रहे हैं।
Published on:
02 Jun 2025 08:24 pm
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