
गैमोफोबिया बीमारी
सविता व्यास
जयपुर। कार्तिक की मेल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी-खासी नौकरी थी। घर वाले भी खुश थे कि कार्तिक अब सैटल हो गया है। अच्छी नौकरी लगते ही घर में खूब रिश्ते भी आने लगे थे। घर वाले लड़कियों का फोटो दिखाते, लेकिन कार्तिक हमेशा ही शादी की बात तो टाल देता। शुरुआत में तो घरवालों को माजरा समझ में नहीं आया, लेकिन जब मनोचिकित्सक से परामर्श लिया तो पता चला कि कार्तिक गैमोफोबिया बीमारी का शिकार है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें बहुत से युवाओं को शादी और कमिटमेंट से डर लगने लगता है।
इसमें शादी के बाद आज़ादी ख़त्म हो जाने और कमिटमेंट का भय अधिक सताता है। दरअसल शादी एक ऐसा 'लड्डू' है जिसके बारे में बोला जाता है- जो खाए वो भी पछताए और जो ना खाए वह भी पछताए। इसलिए 30 की उम्र पार करते ही पूरी कायनात (परिवार, रिशतेदार, दोस्त) आपकी शादी कराने में जुट जाती है। पर बहुत से कुंवारे ऐसे होते हैं, जिन्हें शादी के नाम से ही डर लगने लगता है। वास्तव में ऐसे लोग गैमोफोबिया के शिकार होते हैं और उन्हें इसका अहसास तक नहीं होता है।
क्या है गैमोफोबिया?
गैमोफोबिया ग्रीक भाषा के दो शब्दों 'गामोस' और 'फोबोस' से मिलकर बना है। 'गामोस' का अर्थ विवाह है। जबकि 'फोबोस' का मतलब डर होता है। इसका मतलब हुआ शादी का डर। गैमोफोबिया को कमिटमेंट के डर के रूप में भी जाना जाता है। यह एक आम फोबिया है, जो खासकर लड़कों में होता है। शादी के साथ आने वाले व्यक्तिगत, वित्तीय और सामाजिक जिम्मेदारियों के कारण लड़के शादी से घबराते हैं।
क्या है लक्षण?
कमिटमेंट के किसी भी विचार के कारण घबराहट।
किसी भी काम के कमिटमेंट को करने में असमर्थता।
विचारों पर कंट्रोल ना कर पाना, आक्रामक होना।
शादी के ख्याल से ही डर जाना।
चिंता, एंग्जायटी और स्ट्रेस होना।
खुद पर कंट्रोल खो देना।
सही पार्टनर ना मिल पाने का भय होना।
भावुक होकर रोने लगना।
इनके अलावा शादी के बारे में सोचकर सीने में दर्द, जी मिचलाना, सांस लेने में दिक्कत, बेहोशी भी लक्षण हो सकते हैं।
मानसिक स्थिति, जिससे उबरना संभव
मनोचिकित्सक डॉ अनिता गौतम ने बताया कि गैमोफोबिया यानी रिश्तों के प्रति गहरी आशंका या डर, एक मानसिक स्थिति है जिससे उबरना पूरी तरह संभव है। आजकल इसकी पहचान और इलाज दोनों ही काफी बेहतर हो चुके हैं। बिहेवियरल थेरपी, खासकर कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी), इसमें बेहद कारगर मानी जाती है। इसके अलावा हिप्नोथेरेपी के जरिए मन को शांत कर, आंतरिक उलझनों से बाहर निकलने में मदद मिलती है। कई मामलों में जरूरत हो तो दवाओं का सहारा लिया जा सकता है।
भविष्य की अनिश्चिंतता को लेकर रहता डर
समाजशास्त्री रश्मि ओझा ने बताया कि वर्तमान दौर में शादी के बाद जिस तरह के डरावने केस सामने आ रहे हैं, उसे लेकर भविष्य की अनिश्चिंतता को लेकर डरना लाजमी है। लुटेरी दुल्हन, दहेज के झूठे केस तो कभी एक्सट्रा मेरिटल अफेयर के मामले आमबात हो गई हैं। इसके अलावा रिश्तों को निभाने को लेकर भी एक फीयर फैक्टर बना रहता है। गैमोफोबिया से जूझ रहे लोगों के लिए सबसे जरूरी है कि वे अपने अनुभवों, भावनाओं और डर को किसी भरोसेमंद व्यक्ति या विशेषज्ञ से साझा करें। बात करने से मन का बोझ हल्का होता है और समाधान की राह भी खुलती है।
Updated on:
11 Apr 2025 03:15 pm
Published on:
11 Apr 2025 02:21 pm
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