जलदाय विभाग की ओर से शहर के विभिन्न क्षेत्रों में करीब 13 ट्यूबवेल खोदे जाएंगे। मिट्टी की संरचना का पता नहीं होने कारण ट्यूबवेल खोदे जाने के दौरान कई दिक्कतें होती हैं। लेकिन अब विभाग की ओर से मिट्टी में बदलाव के साथ ही उसका नमूना लिया जाएगा।
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इस नमूने की भूजल विज्ञानी जांच करेंगे। जिस स्थान पर पानी आ जाएगा। उसका भी नमूना रखेंगे। इससे पता चल सकेगा कि किस तरह की मिट्टी के बाद पानी आ रहा है। पानी कितनी गहराई के बाद आएगा। इसका सटीक अंदाजा लग सकेगा।
यह होगा फायदा:
आम तौर पर आसपास की जमीनों की संरचना एक ही तरह की होती है। हर कुछ मीटर के बाद यह बदलती है। डेटा होने के कारण विभाग को जमीन में कितनी दूरी पर पानी है इसका पता रहेगा। इसके चलते बेवजह ज्यादा खुदाई नहीं होगी। ट्यूवबेल खोदने की लागत भी कम होगी।
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यह आती है दिक्कत:
आमतौर पर अजमेर में करीब पांच से दस मीटर की खुदाई के बाद पत्थर आने शुरू हो जाते हैं। करीब एक मीटर की खुदाई के बाद जमीन की संरचना बदलती रहती है। पता नहीं होने के कारण इसके चलते ट्यूबवेल व हैण्डपम्प खोदने में समय भी लगता है।
– ट्यूबवेल खुदाई के दौरान नमूने एकत्र करेंगे। इसका डेटा बनाएंगे। ट्यूबवेल खोदने से पहले जमीन की संरचना का पता रहे तो कई फायदे होते हैं। जैसे किस किस्म की मिट्टी के बाद पानी आ रहा है। पानी कितने फीट के बाद है। इन बातों का पता चलने से वर्किंग आसान होगी। लागत पर भी असर पड़ेगा। हम आसपास के जगह को रिचार्ज करने की व्यवस्था भी करेंगे।
राजीव सुगोत्रा, अधिशासी अभियंता जलदाय विभाग