
पीएम मोदी की मटका पद्धति अपना रहा वन विभाग
प्रदेश का वन विभाग अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नक्शे कदम पर चलने की कोशिश कर रहा है। आज प्रदेश के वन विभाग ने पौधरोपण कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसमें वन और पर्यावरण मंत्री सुखराम विश्नोई ने मटका थिम्बक पद्धति से पौधा लगाया और कहा कि विभाग प्रदेश में इस पद्धति को बढ़ावा दे रहा है क्योंकि इससे कम पानी में पौधे को तेजी से विकसित किया जा सकता है। लेकिन हम आपको बता दें कि पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में इसी पद्धति से पौधा लगाया था और देशवासियों से इस विधि को अपनाने का आह्वान किया था। इस दौरान उन्होंने २०११ में इस पद्धति पर लिखा हुआ एक ब्लॉग भी शेयर किया था।
यह था पीएम मोदी का ब्लाग
एक बेटी, एक पेड़ और एक शिक्षक शीर्षक से लिखे गए लेख में पीएम मोदी ने बताया कि मुझे यह बात जानकार काफी खुशी हुई कि लोग अपनी बेटी के जन्म पर पेड़े लगाने के बारे में मेरे ट्वीट को काफी पसंद कर रहे हैं। धरती के संरक्षण में आपकी एक छोटी सी पहल का स्वागत है।आपकी रुचि को देखते हुएए मैं आपके साथ मैं सबसे कीमती संसाधन को संरक्षित करने के लिए एक सुझाव साझा करना चाहूंगा। पीएम मोदी ने लिखा,इसके लिए एक मटके की जरूरत होगी। उसे पौधे के समानांतर ही जमीन में गाड़ दें और उसमें पानी भर दें। इसकी वजह से आपको पौधा में एक सप्ताह के बाद पानी देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मटके से स्वत: पानी पौधे तक पहुंचने लगेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि कृपया इस बात का ध्यान रखें कि मटके में किसी तरह की छेद न करें, और अगर आप बेहतर परिणाम की इच्छा रखते हैं, तो बर्तन धोने के बाद बचे पानी से उसे भर दें। यह विधि पहले से ही गुजरात के कुछ हिस्सों में प्रचलित है। दोस्तों, इस तरह के छोटे.छोटे कामों से महान काम किया जा सकता है। विभाग इसी पद्धति को अपना रहा है।
एेसे किया जाता है पौधरोपण
आपको बता दें कि पौधरोपण के बाद नियमित सिंचाई की आवश्कता होती है। लेकिन कई बार हम व्यस्तता के चलते पौधों में पानी डालना भूल जाते हैं साथ ही जहां पर नियमित रूप से सिंचाई करने की व्यवस्था नहीं है वहां पौधों की सुरक्षा के लिए मटका थिम्बक पद्धति से कारगर साबित हो सकती है। मटका पद्धति से पौधरोपण के लिए एक पुराना मटका लें। उसमें एक छेद करें तथा उसमें जूट की रस्सी डालकर पौधे के पास गाड़ दें और मटके को पानी से भर दें। एक बाल्टी पानी मटके में भरने से पांच दिन तक पौधे में पानी देने की आवश्यकता नहीं होगी। उअन्य पौधों की तुलना में मटके से सिंचाई की व्यवस्था वाला पौधा जल्दी बढ़ता है। पिछले दिन मटका थिम्बक पद्धति से पौधों को पानी देने में पानी और समय के साथ मेहनत भी बचती है। पौधरोपण के समय ही इसका इस्तेमाल करने से पौधे के बड़े होने तक लगातार इसका उपयोग किया जा सकता है।
पानी के साथ समय की बचत
बहुत ही कम संसाधन और सरल सी इस तकनीक के अपनाने से ही पौधे का विकास भी तेजी से होता है। इसके जरिए फलों और सब्जियों की खेती भी की जा सकती है। इसमें सबसे कम मात्रा में पानी की खपत होती है यानी पानी की ज्यादा.से.ज्यादा बचत की जा सकती है। यह एक ऐसी सरल.सहज और बिना पैसों की तकनीक है, जिससे कम पानी में भी पौधा जीवित रह सकता है और पानी का भी अपव्यय नहीं होता है। प्रदेश का वन विभाग अब इस विधि को अपना रहा है। इसके लिए जरूरी सामग्री जैसे पुराना मटका और जूट की रस्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
तेजी से बढ़ता है पौधा
मटका थिम्बक पद्धति से घर में आसानी से पौधे लगाए जा सकते हैं। आमतौर पर हर साल गर्मियों के दौरान घर का मटका बदला जाता है। एेसे में नए मटके में पीने का पानी रखें और पुराने मटके को पौधों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
दरअसल पौधा रोपते समय जो गड्ढा खोदा जाता है, उसी गड्ढे में कुछ दूरी पर कोई पुराना मटका रख देते हैं और मटके की तली में एक छेद किया जाता है। इस छेद से होकर जूट की रस्सी पौधे की जड़ों तक पहुंचाई जाती है। अब पौधा रोपने के बाद मटके के निचले हिस्से को भी पौधे की जड़ों की तरह खोदी गई मिट्टी से ढंक दिया जाता है। गड्ढा भरने के लिए मिट्टी, रेत और गोबर खाद बराबर.बराबर लेना चाहिए। यह ध्यान रखा जाता है कि मटके का मुंह खुला रहे। चाहें तो धूप या प्रदूषण से बचाने के लिए इसे कपड़े से ढंका भी जा सकता है। इससे फायदा यह होगा कि आप एक बार मटके को पानी से भर देंगे तो अगले पांच दिनों तक पौधे को पानी देने की जरूरत नहीं होगी। मटके की तली में लगी जूट की रस्सी बूंद.बूंद कर टपकते हुए पौधे की जड़ों तक पानी पहुंचाती रहेगी। जैसे.जैसे पौधा पानी लेता रहेगा, वैसे.वैसे मटके में पानी कम होता जाएगा। इस तरह तो पानी, समय और मेहनत की बचत होगी वहीं दूसरी तरफ पौधे की बढऩे की गति भी तेज रहेगी।
Updated on:
01 Jul 2020 05:35 pm
Published on:
01 Jul 2020 04:44 pm
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