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जयपुर

होली की उमंग के बाद बिखरती है गणगौर की छटा, देखने के लिए सैलानी जुटते हैं राजस्थान में

Gangaur Festival 2018- गणगौर का त्यौहार चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को मनाया जाता है। यानी रंगों के पर्व हाेली के तुरंत बाद शुरू होता है।

जयपुरMar 02, 2018 / 06:33 am

santosh

Gangaur Festival 2018
जयपुर। Gangaur Festival 2018- राजस्थान को अगर यहां के समृद्ध इतिहास, ऐतिहासिक धरोहरों, शानदार किलों और आकर्षक पर्यटन स्थलों के रूप में ही जानते हैं, तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं प्रदेश की एक और खास आकर्षण के बारे में… रंग—बिरंगे रंगों का ये प्रदेश अपने तीज त्यौहारों के लिए भी खासा लोकप्रिय है। यहां के मेले, त्यौहार और रीति रिवाज में आपको विभिन्नता का रस घुला दिखेगा, तो वहीं अलग अलग रिवाज आपको हैरान करने के साथ राेमांचित भी करेंगे। वैसे तो राजस्थान में लगभग वही त्यौहार मनाए जाते हैं, जो पूरे देश में आयोजित होते हैं। लेकिन कुछ त्यौहार यहां के अपने हैं। उनका इतिहास इसी धरती से जुड़ा है। इन त्यौहारों में तीज और गणगौर प्रमुख हैं।
गणगौर का त्यौहार चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को मनाया जाता है। यानी रंगों के पर्व के तुरंत बाद शुरू होता है परंपराओं से जुड़ा गणगौर। होली के दूसरे दिन से ही शुरू होने वाले गणगौर की छटा 16 दिनों तक बिखरती है। मान्यता है कि गणगौर यानी गवर अपने पीहर आती है और फिर उनके पति ईसर उन्हें लेने आते हैं। इसके बाद चैत्र शुक्ल द्वितीया व तृतीया को गणगौर को अपने ससुराल के लिए विदा कर दिया जाता है। पूजन के साथ ही इस पर्व पर मेला भी निकाला जाता है। यह लोकप्रिय मेला गौरी माता के सम्मान में आयोजित किया जाता है। राजस्थान के लगभग सभी शहरों में इस पर्व की धूम रहती है। प्रदेश की राजधानी जयपुर में इसे महिलाओं का उत्सव भी कहा जाता है। कुंवारी लड़कियां गणगौर से मनपसंद वर की कामना करती हैं तो वहीं विवाहिताएं पति की दीर्घायु के लिए पूजन करती हैं। अलग-अलग समूहों में महिलाएं लोकगीत गाते हुए फूल तोड़ती हैं और कुओं से पानी भर कर लाती हैं। लोक संगीत की धुनें गजब का माहौल बना देती हैं।
यूं मनाया जाता है
गणगौर का पर्व सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं। उत्सव प्रारंभ होने के साथ ही महिलाएं हाथों और पैरों को मेहंदी से सजाती हैं। इसके बाद सोलह श्रृंगार के साथ गवर माता को पूजती हैं। गाती-बजाती स्त्रियां होली की राख अपने घर ले जाती हैं। मिट्टी गलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाई जाती हैं। पूजन के स्थान पर दीवार पर ईसर और गवरी के भव्य चित्र अंकित कर दिए जाते हैं। ईसर के सामने गवरी हाथ जोड़े बैठी रहती है। ईसरजी काली दाढ़ी और राजसी पोशाक में तेजस्वी पुरुष के रूप में अंकित किए जाते हैं। मिट्टी की पिंडियों की पूजा कर दीवार पर गवरी के चित्र के नीचे सोली कुंकुम और काजल की बिंदिया लगाकर हरी दूब से पूजती हैं। साथ ही इच्छा प्राप्ति के गीत गाती हैं। दीवार पर सोलह बिंदियां कुंकुम की, सोलह बिंदिया मेहंदी की और सोलह बिंदिया काजल की रोज लगाई जाती हैं। कुंकुम, मेहंदी और काजल तीनों ही श्रृंगार की वस्तुएं हैं और सुहाग का प्रतीक भी! महादेव को पूजती कुंआरी कन्याएं मनचाहे वर प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। अंतिम दिन भगवान शिव की प्रतिमा के साथ सुसज्जित हाथियों, घोड़ों का जुलूस और गणगौर की सवारी निकलती है, जो आकर्षण का केंद्र जाती हैं। अब राजस्थान पर्यटन विभाग की वजह से हर साल मनाए जाने वाले इस गणगौर उत्सव में कई देशी-विदेशी पर्यटक पहुंच रहे हैं। अब आपकाे बताते हैं राजस्थान के इन जिलों में गणगौर कैसे मनाई जाती है।
जयपुर की गणगौर
जयपुर में गणगौर काफी धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन राज परिवार का मेला निकलता है। अगर आपने इससे पहले कभी इस त्यौहार को नहीं देखा है या इसके बारे में नहीं सुना तो जयपुर में इस त्यौहर की झलक देखी जा सकती है। यहां महिलाएं रंग बिरंगे परिधानों में सज संवरकर गौरी और शिव की आराधना की जाती है।
जोधपुर की गणगौर
जोधपुर में अनोखा लोटियों का मेला सजता है। कन्याएं कलश सिर पर रखकर घर से निकलती हैं। किसी मनोहर स्थान पर उन कलशों को रखकर इर्द-गिर्द घूमर लेती हैं। वस्त्र और आभूषणों से सजी, कलात्मक लोटियों को सिर पर रखे हजारों की संख्या में गाती हुई नारियों के स्वर से जोधपुर का पूरा बाजार गूंज उठता है। प्राचीन काल की बात करें तो राजघरानों में रानियां और राजकुमारियां रोज गवर पूजती थीं।
उदयपुर की गणगौर
उदयपुर की पिछौला झील में सजी नौकाओं का जुलूस लोगों को काफी आकर्षित करता है। यहां गणगौर नाव प्रसिद्ध है। पारंपरिक परिधानों में महिलाएं शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए पिछौला झील के गणगौर घाट पर देवी पार्वती की मूर्तियों की पूजा-अर्चना करती हैं। तीन दिनों के इस मेवाड़ उत्सव में कई देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं। गणगौर उत्सव के आखिरी दिन उदयपुर से 30 किलोमीटर दूर ग्रामीण अंचल में ग
णगौर का बड़ा मेला भी भरता है।
गणगौर पर राजस्थान आएं तो इन व्यंजनों का स्वाद जरूर लें
गणगौर पर यदि आप राजस्थान आते हैं तो यहां के विशेष्श्थुा व्यंजनों का स्वाद जरूर लें। गणगौर उत्सव के दौरान यहां बथुए का रायता, बथुए की पिंडी, आटे के फल, चूरमा, पूड़ी, कैरी लभेरे की सब्जी जैसे व्यंजन बनते हैं। कुट्टू की पूरी, सिंघाड़े का हलवा, कद्दू का रायता,कच्चे केले की चाट और केले की बर्फी खाना भी यहां आकर आप बिल्कुल ना भूलें। तो किसा बात का है इंतजार.. राजस्थान भी आपका बेसब्री से इंतजार कर रहा है…

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