गणगौर का पर्व सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं। उत्सव प्रारंभ होने के साथ ही महिलाएं हाथों और पैरों को मेहंदी से सजाती हैं। इसके बाद सोलह श्रृंगार के साथ गवर माता को पूजती हैं। गाती-बजाती स्त्रियां होली की राख अपने घर ले जाती हैं। मिट्टी गलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाई जाती हैं। पूजन के स्थान पर दीवार पर ईसर और गवरी के भव्य चित्र अंकित कर दिए जाते हैं। ईसर के सामने गवरी हाथ जोड़े बैठी रहती है। ईसरजी काली दाढ़ी और राजसी पोशाक में तेजस्वी पुरुष के रूप में अंकित किए जाते हैं। मिट्टी की पिंडियों की पूजा कर दीवार पर गवरी के चित्र के नीचे सोली कुंकुम और काजल की बिंदिया लगाकर हरी दूब से पूजती हैं। साथ ही इच्छा प्राप्ति के गीत गाती हैं। दीवार पर सोलह बिंदियां कुंकुम की, सोलह बिंदिया मेहंदी की और सोलह बिंदिया काजल की रोज लगाई जाती हैं। कुंकुम, मेहंदी और काजल तीनों ही श्रृंगार की वस्तुएं हैं और सुहाग का प्रतीक भी! महादेव को पूजती कुंआरी कन्याएं मनचाहे वर प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। अंतिम दिन भगवान शिव की प्रतिमा के साथ सुसज्जित हाथियों, घोड़ों का जुलूस और गणगौर की सवारी निकलती है, जो आकर्षण का केंद्र जाती हैं। अब राजस्थान पर्यटन विभाग की वजह से हर साल मनाए जाने वाले इस गणगौर उत्सव में कई देशी-विदेशी पर्यटक पहुंच रहे हैं। अब आपकाे बताते हैं राजस्थान के इन जिलों में गणगौर कैसे मनाई जाती है।
जयपुर में गणगौर काफी धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन राज परिवार का मेला निकलता है। अगर आपने इससे पहले कभी इस त्यौहार को नहीं देखा है या इसके बारे में नहीं सुना तो जयपुर में इस त्यौहर की झलक देखी जा सकती है। यहां महिलाएं रंग बिरंगे परिधानों में सज संवरकर गौरी और शिव की आराधना की जाती है।
जोधपुर में अनोखा लोटियों का मेला सजता है। कन्याएं कलश सिर पर रखकर घर से निकलती हैं। किसी मनोहर स्थान पर उन कलशों को रखकर इर्द-गिर्द घूमर लेती हैं। वस्त्र और आभूषणों से सजी, कलात्मक लोटियों को सिर पर रखे हजारों की संख्या में गाती हुई नारियों के स्वर से जोधपुर का पूरा बाजार गूंज उठता है। प्राचीन काल की बात करें तो राजघरानों में रानियां और राजकुमारियां रोज गवर पूजती थीं।
उदयपुर की पिछौला झील में सजी नौकाओं का जुलूस लोगों को काफी आकर्षित करता है। यहां गणगौर नाव प्रसिद्ध है। पारंपरिक परिधानों में महिलाएं शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए पिछौला झील के गणगौर घाट पर देवी पार्वती की मूर्तियों की पूजा-अर्चना करती हैं। तीन दिनों के इस मेवाड़ उत्सव में कई देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं। गणगौर उत्सव के आखिरी दिन उदयपुर से 30 किलोमीटर दूर ग्रामीण अंचल में ग
णगौर का बड़ा मेला भी भरता है।
गणगौर पर यदि आप राजस्थान आते हैं तो यहां के विशेष्श्थुा व्यंजनों का स्वाद जरूर लें। गणगौर उत्सव के दौरान यहां बथुए का रायता, बथुए की पिंडी, आटे के फल, चूरमा, पूड़ी, कैरी लभेरे की सब्जी जैसे व्यंजन बनते हैं। कुट्टू की पूरी, सिंघाड़े का हलवा, कद्दू का रायता,कच्चे केले की चाट और केले की बर्फी खाना भी यहां आकर आप बिल्कुल ना भूलें। तो किसा बात का है इंतजार.. राजस्थान भी आपका बेसब्री से इंतजार कर रहा है…