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रणदीप हुड्डा संग ‘वीर सावरकर’ में नज़र आएंगे बांछाराम बने गौरव

जयपुर। लालच व्यक्ति से उसकी इंसानियत और संवेदनशीलता दोनों छीन लेता है। बरसों से हमारे देश में गरीब, असहाय और साधनहीन व्यक्ति, ताकतवर के लालच का शिकार होता रहा है। जमीन के एक टुकड़े के लिए एक जमींदार का ऐसा ही लालच देखने को मिला, मंगलवार को रवीन्द्र मंच के मिनी थिएटर में मंचित नाटक 'बगिया बांछाराम की' में। 30 साल के गौरव त्रिपाठी ने 80 साल के बूढ़े बांछाराम की मुख्य भूमिका निभाई। गौरव बीते 10 वर्षों से मुंबई में फिल्मों और धारावाहिकों में काम कर रहे हैं।

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जयपुर

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Mohmad Imran

Jun 13, 2023

रणदीप हुड्डा संग 'वीर सावरकर' में नज़र आएंगे बांछाराम बने गौरव

रणदीप हुड्डा संग 'वीर सावरकर' में नज़र आएंगे बांछाराम बने गौरव

फिल्म 'वीर सावरकर' में नजर आएंगे 'बांछाराम'
गौरव ने बताया, 'मैं बीते दस वर्षों से रंगमंच और मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हूं। अब तक 100 से ज्यादा धारावाहिकों में छोटी लेकिन अहम भूमिकाएं निभा चुका हूं। अलग-अलग धरावाहिकों के करीब 400 एपिसोड्स में नजर आ चुका हूं। हाल ही रणदीप हुड्डा की डेब्यू निर्देशकीय फिल्म 'वीर सावरकर' के लिए अंडमान निकोबार में सेल्युलर जेल में शूटिंग कर के आया हूं। रणदीप हुड्डा के साथ काम कर काफी कुछ सीखने को मिला। फिल्म में मैं एक भारतीय ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहा हूं, जो वीर सावरकर को जर्मनी से गिरफ्तार कर सेल्युलर जेल लाता है। गौरव ने बताया कि वह हाल ही एक वेब सीरीज के लिए भी शॉर्ट लिस्ट हुए हैं, जो 1919 के जलियांवाला बाग गोलीकांड पर आधारित है। इरफान खान जी और अमिताभ बच्चन जी के साथ भी विज्ञापन में काम कर चुका हूं।

रोल के लिए डेढ़ महीने की मेहनत
बांछाराम बनने के लिए मैंने डेढ़ महीने रिहर्सल की है। खुद को एक कमरे में बंदकर मैं एक 80 साल के बूढ़े किसान की मानसिकता और बॉडी लैंग्वेज को समझने की कोशिश करता रहा। बतौर कलाकार मैं उस कहानी को अपने जीवन में उतारकर सोचता हूं कि इस किरदार पर क्या बीती होगी। इस प्ले को मैं पहले मुंबई में भी कर चुका हूं, जहां हमें बहुत अच्छा रेस्पॉन्स मिला।

बगिया हड़पने में जुटा हर किरदार
नाटक में दिखाया गया है कि बूढ़े बांछाराम ने बड़ी मेहनत से एक बगिया बनाई है, जिस पर गांव के लालची जमींदार से लेकर उसके अपने दोहिते और नाते-रिश्तेदारों की भी नीयत खराब है। सब कैसे भी कर के बांछाराम को रास्ते से हटाकर उसकी बगिया और जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं। आखिर में बांछाराम को अपनी बगिया मिल जाती है और लालची लोग अपने अंजाम को पहुंच जाते हैं।