-फरवरी 2020 में ही जस्टिस राम लुभाया कमेटी सरकार को सौंप चुकी है जवाबदेही कानून का मसौदा रिपोर्ट, मौजूदा विधानसभा सत्र में राइट टू हेल्थ और जवाब दे कानून का बिल लाने की नहीं मंशा, कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में भी था जवाब देही कानून लागू करने का वादा, 2022 के बजट बजट सत्र में भी सीएम गहलोत ने जवाब देही कानून लागू करने की बात कही थी, सिविल सोसाइटी और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग लगातार जवाब देही कानून लागू करने के लिए कर रहे धरने-प्रदर्शन
फिरोज सैफी/जयपुर।
सरकारी कामकाज में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की जवाबदेही तय करने के लिए भले ही अपने चुनाव घोषणापत्र में जवाबदेही कानून लागू करने का वादा किया हो लेकिन सरकार अब अपने ही इस वादे पर अमल करते नजर नहीं आ रही है। हालांकि सरकार बनने के बाद जवाबदेही कानून लागू करने के लिए कवायद हुई थी लेकिन अब मसौदा रिपोर्ट मिलने के बावजूद सरकार मौजूदा विधानसभा सत्र में जवाब दे कानून का बिल लाने से परहेज कर रही है।
सूत्रों की माने तो इसकी संभावना कम ही है कि मौजूदा सत्र में सरकार जवाब देही कानून का बिल लेकर आए। सरकार की इस वादाखिलाफी के खिलाफ सिविल सोसाइटी और सामाजिक संगठनों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और लगातार धरने-प्रदर्शनों के जरिए सरकार का ध्यान आकर्षित भी कर रहे हैं। सरकार की वादाखिलाफी से सिविल सोसाइटी और एनजीओ से जुड़े कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ रही है।
2 साल पहले ही सरकार को सौंपी जा चुकी है जवाबदेही कानून की रिपोर्ट
दिलचस्प बात तो यह है कि सिविल सोसाइटी और सामाजिक संगठनों के दबाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सितंबर 2019 में जवाबदेही कानून का मसौदा तैयार करने के लिए रिटायर्ड आईएएस अधिकारी राम लुभाया की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट फरवरी 2020 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सौंप दी थी लेकिन आज तक इस रिपोर्ट में काम आगे नहीं बढ़ पाया।
2019 और 2022 के बजट सत्र में अभी सीएम ने की थी घोषणा
दरअसल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2019 और 2022 के बजट सत्र में भी जवाब देही कानून प्रदेश में लागू करने की घोषणा की थी, लेकिन अब सरकार की घोषणाओं पर ही अमल नहीं हो रहा है। जबकि कांग्रेस पार्टी के 2018 के चुनाव घोषणा पत्र में पार्टी ने भी प्रदेश में जवाब देही कानून लागू करने का वादा किया था।
राइट टू हेल्थ कानून का भी यही हाल
वहीं दूसरी ओर कोरोना काल के दौरान सरकार की ओर से प्रदेश में बेहतर चिकित्सा सुविधाएं जनता को उपलब्ध करवाने के लिए राइट टू हेल्थ कानून लागू करने का दावा किया गया था। राइट टू हेल्थ कानून का मसौदा भी पिछले डेढ़ साल से लॉ डिपार्टमेंट में धूल फांक रहा है, उस पर भी अभी तक आगे कार्रवाई नहीं बढ़ सकी है।
यह भी है देरी की वजह
सिविल सोसाइटी से जुड़े लोगों के माने तो प्रदेश में जवाब देही कानून में देरी की एक वजह नौकरशाहों का रवैया भी है। नौकरशाह नहीं चाहते कि प्रदेश में जवाब देही कानून लागू होस क्योंकि अगर यह कानून लागू होता है तो फिर नौकरशाहों और कर्मचारियों की जवाबदेही तय हो जाएगी और काम में लापरवाही बरतने और लोगों के काम नहीं करने वाले अफसरों और कर्मचारियों पर सीधे कार्रवाई होगी।
बताया जाता है कि जवाबदेही कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति ने किसी विभाग में आवेदन किया है तो 15 दिनों के भीतर उस समस्या का निस्तारण करना पड़ेगा, या किन वजहों से काम नहीं हो पाया उनका जवाब देना होगा। ऐसा नहीं करने वाला अधिकारी व कर्मचारी खिलाफ कठोर कार्रवाई हो सकेगी।
किसलिए नाराज हैं सिविल सोसाइटी के लोग
इधर सिविल सोसाइटी के लोग नाराज हैं क्योंकि उनका मानना है कि अगर सरकार मौजूदा सत्र में बिल पेश नहीं करती है तो फिर आगे इसकी संभावना कम ही नजर आती है की जवाबदेही कानून लागू हो क्योंकि सरकार का पांचवा और अंतिम बजट चुनावी बजट होता है ऐसे में उसकी घोषणा संभवत कम ही लागू हो पाती हैं।
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