
जयपुर। कभी घने वृक्षों से आछांदित वन क्षेत्र आज घनी आबादी क्षेत्र बन गया है। जिस समय यहां दुर्गा माता का मंदिर की स्थापना की गई उस समय यहां दूर दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। मंदिर बनने के बाद महाराजा ने यहां एक गांव बसाया जिसका नाम माता के नाम पर दुर्गापुरा रखा गया। महाराजा ने मातारानी की सेवा पूजा के लिए बंगाल से पुजारी बुलाए। पुजारी परिवार की 11वीं पीढ़ी आज भी यहां पूजा कर रही है।
माता की सेवा-पूजा के लिए महाराजा ने जागीर के रूप में मदरामपुरा में 729 बीघा जमीन दी थी, जिसके लगान से मंदिर का खर्च चलता था। 1960 में जागीर खालसा हो गई।
बालाबक्स ने करवाया जिर्णोद्वार
मंदिर का निर्माण प्रतापसिंह ने करवाया था, उसके बाद महाराजा माधोसिंह के शासनकाल में मंदिर का जिर्णोद्धार बालाबक्स कवास ने करवाया था। महाराजा माता की पूजा करने के लिए बंगाल से पंडित लेकर आए थे। जिनकी 11वीं पीढ़ी के महेन्द्र भट्टाचार्य वर्तमान में सेवा पूजा कर रहे हैं।
महाराजा प्रताप सिंह ने करवाई थी स्थापना
मंदिर के पुजारी पंडित महेन्द्र भट्टाचार्य बताते हैं कि महाराजा दुर्गा मां की प्रतिमा महाराजा शिलामाता के साथ जसोर से लेकर आए थे। पहले यह प्रतिमा आमेर में ही रखी हुई थी, जिसकी बाद में स्थापना महाराजा प्रताप सिंह ने संवत 1871 में करवाई थी। ऐसा माना जाता है कि महाराजा ने राजसूय यज्ञ किया और यज्ञ का घोड़ा छोड़ा। घोड़ा चारों ओर चक्कर लगा दुर्गापुरा के निकट एक जंगल में रुक गया। जहां घोड़ा रुका महाराजा ने उसी स्थान पर मां की प्रतिमा का प्रतिष्ठा करवाई।
Updated on:
23 Sept 2017 03:39 pm
Published on:
23 Sept 2017 03:04 pm
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
