
जयपुर। सवाईमानसिंह मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध अस्पतालों के कई सीनियर चिकित्सक सेवानिवृत्त होने के बाद अब शहर के निजी अस्पतालों में सेवाएं दे रहे हैं। जीवन भर अपनी स्पेशियलिटी से हजारों मरीजों का सफल इलाज करने के बाद अब इनका लाभ रिटायर्ड मॉडल के आधार पर निजी अस्पताल उठा रहे हैं।
इन अस्पतालों के संचालन में इनकी बड़ी भूमिका मानी जा रही है। हैरत की बात यह है कि जयपुर के उन क्षेत्रों में भी निजी अस्पताल बेहतर तरीके से चल रहे हैं। जहां राज्य सरकार दो दशक में अपने अस्पतालों को उन्नत नहीं कर पा रही। प्रताप नगर स्थित राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय से संबद्ध आरयूएचएस और मालवीय नगर का जयपुरिया अस्पताल राज्य सरकार की ओर से एसएमएस अस्पताल का विकल्प तो बनाए गए हैं, लेकिन स्थायी भर्ती के अभाव में इन अस्पतालों में सेवाओं का विस्तार नहीं हो सका।
राज्य सरकार की और से एसएमएस अस्पताल के स्थानांतरित और एपीओ डॉक्टरों के सहारे इनका संचालन किया जा रहा है। हालांकि, 2014 से यहां किसी भी स्थायी फैकल्टी की भर्ती नहीं की गई है। मानसरोवर में शिप्रा पथ पर मानस आरोग्य सदन और सीकर रोड पर ट्रोमा संस्थान के भवन को तो सरकार ने यह कहकर निजी हाथों में सौंप दिया था कि सरकार के पास इन अस्पतालों को चलाने के लिए मेन पावर नहीं है। जबकि उसके बाद यहां निजी क्षेत्र सफलता पूर्वक अस्पताल चला रहे है।
राजधानी के अलग-अलग इलाकों में एसएमएस अस्पताल का भार कम करने के लिए दो दशक पहले बड़े अस्पतालों की स्थापना की गई थी, परंतु इनमें से अधिकांश में सुपर स्पेशियलिटी सेवाओं का अभाव है। इसका परिणाम यह है कि एसएमएस अस्पताल पर अब भी हर दिन करीब 40 हजार मरीजों का भार है।
आरयूएचएस और जयपुरिया अस्पताल को जयपुर शहर में सवाईमानसिंह अस्पताल के बाद सबसे बड़ा अस्पताल माना जाता है। लेकिन आज भी यहां हृदय जैसी विशेषज्ञता उपलब्ध नहीं है। जबकि हार्ट अटैक आने पर गोल्डन ऑवर में इलाज शुरू होने पर ही मरीज की जान बचाई जा सकती है।
कई बार मरीज बड़े सेंटर की उम्मीद में यहां पहुंच जाते हैं। लेकिन यहां आने के बाद उन्हें एसएमएस ही जाने की सलाह दी जाती है। भाजपा सरकार बनने के बाद सवाईमानसिंह अस्पताल से 16 चिकित्सक शिक्षकों को आरयूएचएस भेजा गया। लेकिन अनुपलब्ध संसाधनों के कारण इनमें से अधिकांश ने कोर्ट के जरिये अपना तबादला निरस्त करवा लिया।
हाल ही में, आरयूएचएस को एम्स की तर्ज पर राजस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) में बदलने की घोषणा की गई है। लेकिन इसके लिए स्थायी फैकल्टी की आवश्यकता है। वर्तमान में यहां रिटायर्ड डॉक्टरों पर निर्भरता है, जो निजी की तर्ज पर पे माइनस मॉडल के तहत सेवाएं दे रहे हैं। सूत्रों के अनुसार नेशनल मेडिकल कमीशन के निरीक्षण के लिए सवाईमानसिंह मेडिकल कॉलेज से प्रदेश के दूसरे शहरों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भेजे गए चिकित्सक शिक्षक भी जुगाड़ के तौर पर आरयूएचएस आने के प्रयास में है।
आरयूएचएस को उन्नत श्रेणी का अस्पताल बनाया गया है, जहां एसएमएस से डॉक्टरों के आने के बाद ओपीडी और आइपीडी में वृद्धि हुई है। -डॉ. अजीत सिंह, अधीक्षक, आरयूरचएस अस्पताल
Published on:
04 Nov 2024 08:00 am
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