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कुलिशजी और रतन टाटा की पहली मुलाकात में रूसीलाला ने बताई राजस्थान पत्रिका की रीडर्स पावर

उग्रवादी संगठन को लेकर टाटा समूह मुश्किल में था, कुलिशजी की बेबाक टिप्पणियों ने रखा सही आकलन ताज होटज में रतन टाटा पहुंचे तो रूसीलाला ने कहा... ‘रतन, लेट मी इंट्रोड्यूस टू माय फ्रेंड मिस्टर

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जयपुर

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Vikas Jain

Oct 11, 2024

जयपुर. करीब तीस वर्ष पूर्व राजस्थान पत्रिका के संस्थापक कर्पूरचंद कुलिश और टाटा समूह के सबसे बड़े ट्रस्ट ‘सरदोराबजी टाटा ट्रस्ट’ के निदेशक रूसीलाला के साथ मुंबई के ताज होटल के सी-लाउंज में कॉफी पी रहे थे। उसी समय रतन टाटा वहां आए। लाला ने रतन टाटा को आवाज देकर कहा, ‘रतन, लेट मी इंट्रोड्यूस टू माय फ्रेंड मिस्टर कुलिश।’ इस मुलाकात में लाला ने टाटा को राजस्थान पत्रिका की पाठकों के साथ पावर के बारे में बताया। यहीं से टाटा के साथ दो-तीन बार व्यक्तिगत मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ।

राजस्थान पत्रिका और टाटा समूह के संबंध तब और प्रगाढ़ हुए जब टाटा समूह असम के उग्रवादी संगठन को लेकर एक मुश्किल स्थिति में घिर गया। तब कुलिशजी ने अपनी बेबाक टिप्पणियों से सही स्थिति का आकलन प्रस्तुत किया, जिसकी प्रशंसा स्वयं रतन टाटा ने की और उस संबंध में पत्र भी लिखा। टाटा समूह की ओर से 'नैनो' कार बाजार में उतारने के दौरान पत्रिका में प्रकाशित एक टिप्पणी में भारतीय उद्योग जगत की शक्तियों और सामथ्र्य की प्रशंसा की गई थी। कई लोग यह नहीं जानते होंगे कि भारत में सर्वप्रथम हवाई सेवा का प्रारंभ टाटा समूह ने किया और उनकी ओर से संचालित एयर इंडिया विश्व की सर्वश्रेष्ठ एयरलाइन्स में से एक बन गई। कालांतर में सरकार ने उसे अधिग्रहित कर लिया। अधिग्रहण के बाद सेवा में लगातार गिरावट के कारण एयर इंडिया का बुरा हाल हो गया और वह बंद होने की कगार पर आ गई। रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने इस एयर इंडिया को वापस खरीद लिया और अब उसमें निरंतर सुधार किया जा रहा है। फोर्ड जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी के संचालकों को भी रतन टाटा ने उपकृत किया। इतनी भारी सफलताओं के बावजूद रतन टाटा ने जीवन पर्यंत अपने आपको टाटा कंपनियों का मालिक न मानकर हमेशा एक ट्रस्टी के रूप में ही काम किया।

पत्रिका ने जेआरडी टाटा की जीवनी का अनुवाद प्रकाशित किया

मुंबई कार्यालय में कार्यरत रहते हुए मैंने जेआरडी टाटा की जीवनी ‘बियोंड द लास्ट ब्लू माउंटेंस’ पढ़ी। उसी दौरान गुलाब कोठारी का मुंबई आगमन हुआ। मैंने इच्छा व्यक्त की कि इस पुस्तक को हिंदी में अनुवाद करके पत्रिका में धारावाहिक प्रकाशित किया जाना चाहिए। उन्होंने सहर्ष इस पर अपनी सहमति दी और अगले ही दिन हम पुस्तक के लेखक रूसीलाला से मिलने टाटा समूह के मुख्यालय चले गए। लेखक रूसीलाला ने पुस्तक को पत्रिका में अनुवाद कर प्रकाशित करने की अनुमति दे दी। जीवनी के कुछ अंशों के प्रकाशन के पश्चात ही एक दिन उनका फोन आया और उन्होंने बताया कि उनके कार्यालय में पाठकों के पत्रों की बाढ़-सी आ गई है। टाटा समूह की नीति के अनुरूप सभी पत्रों की प्राप्ति देने के लिए उन्हें एक अतिरिक्त सेक्रेटरी की आवश्यकता लग रही है। इस प्रकार टाटा समूह से एक विशेष लगावपूर्ण और सम्माननीय संबंधों की शुरुआत हुई। कुछ अवसरों पर तो टाटा ट्रस्ट को राजस्थान से प्राप्त सहायता संबंधी आवेदनों पर हमसे भी परामर्श चाहा गया।