
जयपुर। देश-दुनिया के बहुत से लोग रोजाना जयपुर की सैर करने आते हैं। बहुत से पर्यटन केंद्रों के साथ ही यहां का जंतर-मंतर लोगों के आकर्षण का केन्द्र है। ये देश में लगभग एक ही वक्त पर निर्मित 5 प्रमुख वेधशालाआें में से एक है आैर जो भी इसे देखने आता है वो 18वीं शताब्दी की शुरुआत में बनार्इ गर्इ इस वेधशाला काे देखकर दंग रह जाता है। इसका कारण है कि ये वेधशाला अन्य वेधशालाआें से सबसे बड़ी है।
यूनेस्को ने जयपुर के जंतर-मंतर को वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किया है। जंतर-मंतर का निर्माण जयपुर के महाराजा सवार्इ जयसिंह ने करवाया था। यह जंतर-मंतर 1728 में बनना शुरु हुआ आैर 1734में बनकर तैयार हो गया। सवार्इ जयसिंह ने ही जयपुर को बसाया था आैर वे एक खगोलशास्त्री भी थे। उन्होंने जयपुर के साथ ही दिल्ली, मथुरा, वाराणसी आैर उज्जैन में भी जंतर मंतर का निर्माण करवाया था।
राजा जयसिंह को जंतर-मंतर की प्रेरणा समरकंद के तत्कालीन शासक उलूग बेग से मिली। जयपुर जंतर मंतर में 19 यंत्र हैं। इनमें सम्राट यंत्र, जयप्रकाश यंत्र, राम यंत्र, चक्र यंत्र, दक्षिण भित्ति यंत्र, दिगम्या यंत्र, दिशा यंत्र, कनाली यंत्र प्रमुख हैं। जंतर-मंतर की सबसे खास बात इसकी गणना है। जयपुर में ही दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर की घड़ी है जिसे बृहत सम्राट यंत्र के नाम से जाना जाता है। यह रचना दो सेकंड की सटीकता से स्थानीय समय बता देती है।
महाराजा सवार्इ जयसिंह के लिए कहा जाता है कि उन्होंने स्वयं जयप्रकाश यंत्र का आविष्कार किया था। उन्होंने ज्योतिष संबंधी वेधशाला के निर्माण से पूर्व कर्इ देशों में अपने दूतों को भेजकर संबंधित ग्रंथों की पांडुलिपियां मंगवार्इ थी। यहां के यंत्र मौसम की जानकारी, समय, ग्रह-नक्षत्रों की गणना आैर खगोलीय घटनाआें के बारे में बताते
18वीं शताब्दी में इसे लकड़ी, चूने, पत्थर आैर धातु से निर्मित किया गया था। बाद में जंतर-मंतर का 1901 में महाराजा सवार्इ माधोसिंह ने पंडित चंद्रधन गुलेरी आैर पंडित गोकुलचंद के सहयोग से संगमरमर के पत्थरों पर कराया था। सूर्य से ध्रुव तारे आैर नक्षत्रों की क्रांति से समय ज्ञान तक एेसी बहुत सी बातें हैं जो पर्यटकों को आश्चर्य चकित कर देती है।
Published on:
03 Sept 2017 10:11 am
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