
सविता व्यास
जयपुर। मां बनना हर महिला के लिए एक वरदान होता है, क्योंकि ईश्वर के अलावा महिला के अंदर एक नए जीव को जन्म देने की काबिलियत होती है। लेकिन यह वरदान तब अभिशाप बन जाता है, जब कोई महिला शारीरिक और मानसिक रूप से मां बनने के लिए तैयार न हो। राजस्थान की गरासिया जनजाति की यह दुखद हकीकत है, जहां लड़कियों को शादी से पहले ही लिव-इन रिलेशनशिप में रहकर बच्चा पैदा करना होता है। यह प्रथा दापा प्रथा ( Dapa Pratha Kya Hai ) के नाम से जानी जाती है, जो राजस्थान के उदयपुर, सिरोही, पाली और प्रतापगढ़ जैसे जिलों में प्रचलित है। इस प्रथा के तहत लड़कियां 12 से 15 साल की उम्र में अपनी पसंद के लड़के के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगती हैं। इसके बाद, जब वे बच्चा पैदा कर लेती हैं, तो शादी होती है। इस प्रथा के कारण न केवल किशोरावस्था में गर्भवती होने से प्रसव के दौरान कई लड़कियों की मौत हो जाती है। वहीं दापा प्रथा में लड़कियों के पास एक को छोड़कर दूसरे के साथ लिव इन में रहने की भी छूट होती है। जिससे वे यौन रोग, जैसे कि एचआईवी आदि का भी शिकार हो जाती हैं।
दापा प्रथा राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में सैकड़ों सालों से प्रचलित है। एडवोकेट भावाराम गरासिया ने बताया कि इसके अनुसार, लड़की खुद अपनी पसंद का लड़का चुनती है और गणगौर पर्व के दौरान आयोजित मेले में दोनों अपने पसंदीदा साथी को चुनते हैं। इस दौरान लड़कियां 12 से 15 साल की उम्र में होती हैं और लड़के उनके हमउम्र होते हैं। दोनों बिना शादी के दंपती की तरह रहते हैं, जिससे प्रजनन क्षमता का परीक्षण किया जाता है। हालांकि, शादी का कोई प्रमाण नहीं होता और लड़के वालों को लड़की के परिवार को एक रकम भी देनी होती है, जिसे दापा कहा जाता है।
माउंट आबू की जनचेतना संस्था की डायरेक्टर रिचा औदिच्य के अनुसार, चाइल्ड मैरिज एक्ट और पोक्सो कानून केवल तब लागू होते हैं, जब कोई शिकायत प्रशासन या पुलिस तक पहुंचे। गरासिया समाज इस मामले में शादी की उम्र से संबंधित कानूनों को नजरअंदाज करता है। इस प्रथा के चलते, लड़कियां खेलने-कूदने की उम्र में ही गर्भवती हो जाती हैं और कई बार प्रसव के दौरान उनकी जान भी चली जाती है। वहीं, लड़के भी खदानों में मजदूरी करते हैं, जिससे वे सिलिकोसिस जैसी बीमारी का शिकार हो जाते हैं और कई लड़कियां कम उम्र में विधवा हो जाती हैं।
नेशनल हेल्थ सर्वे के अनुसार, राजस्थान में बेटियों की शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति अभी भी गंभीर है। हर तीसरी बेटी 15 से 16 साल की उम्र में मां बन जाती है। इसके अलावा, राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में 34 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 17 प्रतिशत लड़कियां 15-16 साल की उम्र में ही मां बन जाती हैं। बाल मृत्यु दर के मामले में भी राजस्थान की स्थिति खराब है, जहां प्रति हजार बच्चों में से 37.6 प्रतिशत बच्चे पांच साल से पहले ही मर जाते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए सख्त कानूनी कदम और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है, ताकि बेटियों को एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य मिल सके।
राजस्थान में कुल आदिवासी आबादी की 2.5 प्रतिशत आबादी गरासिया जनजाति की।
उदयपुर जिले के खेरवाड़ा, कोटड़ा, झाड़ोल, फलासिया और गोगुंदा।
सिरोही जिले के पिंडवाड़ा और आबू रोड व पाली जिले में करती हैं निवास।
कम उम्र में प्रेग्नेंसी, मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक।
टीन एज में ही मां बनना मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए खतरानाक है। लड़की को प्री-मेच्योर डिलीवरी का सामना करना पड़ सकता है। टीनएज में बच्चे को ठीक से पोषण न मिलने की वजह से बच्चा कम वजन का हो सकता है। ऐसी मां के बच्चे मानसिक रूप से विकृत पैदा होते हैं। वहीं खून की कमी, कुपोषण और हाई बीपी आदि बीमारियों होने से मां की मौत तक हो सकती है।
डॉ कविता सिंघल, स्त्री रोग विशेषज्ञ, जयपुर
Updated on:
11 Nov 2025 02:24 pm
Published on:
05 Jan 2025 03:13 pm
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