जयपुर। रूमा देवी एक ऐसा नाम, जिसको उनके हुनर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। रूमा देवी को यह मुकाम ऐसे ही हासिल नहीं हुआ, इसके पीछे छिपी है संघर्ष की लंबी कहानी। बाड़मेर की रूमा देवी भली ही आठवीं पढ़ी हैं, लेकिन आज बाड़मेर के मंगला की बेड़ी गांव सहित तीन जिलों के 75 गांव की 22000 महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं। इन महिलाओं के उत्पादों को सिर्फ ग्रामीण ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान मिली है। राजधानी जयपुर में फिक्की फ्लो जयपुर चैप्टर की ओर से 22 गोदाम स्थित एक होटल में आयोजित ‘फ्यूचर इज वीमन’ कार्यक्रम में रूमा देवी ने अपनी सक्सेस जर्नी को शेयर किया।
आपको बता दें रूमा हाल ही में केबीसी का हिस्सा बनी हैं। सोनाक्षी सिन्हा खुद उनकी मदद के लिए शो में आई थीं। अमिताभ भी उनकी कहानी सुनकर प्रभावित हुए। रूमा ने जब अभिताभ को एम्ब्रॉडरी वाली बेडशीट गिफ्ट में दी तो उसे देखकर बिग बी ने कहा कि इसे मैं बेड पर बिछाऊंगा नहीं, ओढक़र सोऊंगा।
बाड़मेर की रहनने वाली रूमा देवी रूमा ने बचपन से संघर्ष देखा है। रूमा ने बताया कि जब वह पांच साल की थीं, तब उनकी मां की मौत हो गई। उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली और उन्हें उनके चाचा के पास छोड़ दिया। वह कक्षा आठ में थीं, तभी उनकी पढ़ाई छुड़वाकर घर के कामों में लगा दिया गया। वह लगभग दस किलोमीटर दूर से पानी भरकर बैलगाड़ी से घर तक लाती थीं। वह 17 साल की हुईं कि उनकी शादी कर दी गई। घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा सही नहीं थी जो घर में था उसी से गुजारा होता था। जब मेरा बेटा डेढ़ साल का था तब उसके इलाज के लिए पैसों की जरूरत थी। पैसों के अभाव में बेटा चला गया। यहीं से प्रण लिया कि अब दूसरों के परिवार के लिए कुछ करना है। दादी के सिखाए हुनर को आजमाने की सोची, एम्ब्रॉडरी के काम को शुरू किया। महिलाओं को जोड़ा और अपने काम को विदेशों तक पहुंचाया।
आपको बता दें रुमा देवी ने ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के माध्यम से बाड़मेर जिले में हस्तशिल्प का कार्य करने वाली हजारों महिला दस्तकारों को सशक्त करने का कार्य किया है। लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और कोलंबो के फैशन वीक्स में भी उनके उत्पादों का प्रदर्शन हो चुका है। रूमा देवी को 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा है।