बांसवाड़ा. मृत्यु की कई परिभाषाएं हैं। जिनमें एक है शरीर से आत्मा का अलग होना। इन परिभाषाओं के बीच भी शास्त्रों की परिभाषा भिन्न है। इनके अनुसार जीवन में स्वाध्याय के प्रति अरुचि ही मृत्यु है। यह प्रवचन महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी महाराज ने शहर के डांगपाड़ा स्थित लीयो कॉलेज में 'नॉलेज इज द गेट-वे टू सक्सेजÓ विषय पर आयोजित व्याख्यान माला में दिए। शुरुआत में उन्होंने कहा कि अज्ञानता हर दर्द की जननी है। वेदों के अनुसार यह सबसे बड़ा शत्रु है।
...गुरु शिष्य को गुरु बनाता है...
उन्होंने गुरु की व्याख्या करते हुए कहा कि गुरु अपने शिष्य को चेला बनाता है। लेकिन भारत में गुरु अपने शिष्य को गुरु बनाता है। हर गुरु यहीं चाहेगा कि उसका शिष्य उसे कला, ज्ञान, सामथ्र्य, बुद्धि और हर दाव में उसे पराजित कर गुरुकुल से बाहर निकले। तभी उस ज्ञान में उसकी पारंगतता सिद्ध होगी। इसी प्रकार एक पिता भी अपने पुत्र से हारना पसंद करेगा। आजकल मां अपनी बेटी को टोकती है इसे अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए। असल में मां यह चाहती है कि उसकी बेटी उससे भी महान बने।