
नासा की तरफ से ली गई चंद्रमा की तस्वीर (Photo Credit - IANS)
पृथ्वी के बाद अब चंद्रमा पर रह कर जीवन जीने की चाह को साकार करने के लिए विश्व की कई अंतरिक्ष एजेंसियां काम कर रही हैं और किसी भी इंसानी बसावट के लिए मौजूदा दौर में सबसे जरूरी आवश्यकता है ऊर्जा की। इसी को लेकर अब एक नई स्पर्धा शुरू हो गई है। यह स्पर्धा है चंद्रमा पर परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने की। इसके लिए रूस और चीन मिल कर काम कर रहे हैं। रूस अपने मिशन मून को इसी परमाणु संयंत्र से पावर सप्लाई देगा,लेकिन इस स्पर्धा में अमरीका भी पीछे नहीं है।
चंद्रमा पर परमाणु ऊर्जा केंद्र बनाने की नासा की भी योजना है। रूस के स्टेट स्पेस कॉर्पोरेशन रोस्कोस्मोस ने अपने एक बयान में कहा है कि वर्ष 2036 तक चांद पर अपने लूनर प्रोग्राम के लिए एक पावर प्लांट बनाना चाहता है। इसके लिए इसके लिए उसने एरोस्पेस कंपनी के साथ समझौता भी किया है। इस प्रोजेक्ट में रूस के स्टेट न्यूक्लियर कॉर्पोरेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट के शामिल होने के कारण यह माना जा रहा है कि चंद्रमा पर न्यूक्लियर पावर प्लॉट ही बनाया जाएगा।
चंद्रमा पर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट बनाने के लिए एक तरफ जहां रूस और चीन की जुगलबंदी है। वहीं दूसरी तरफ अमरीका भी इस पर तेजी से काम कर रहा है। इस साल अगस्त में नासा ने घोषणा की थी कि वह चांद पर एक न्यूक्लियर रिएक्टर 2030 की पहली तिमाही तक लेकर जाएगा। न्यूक्लियर एनर्जी को अंतरिक्ष में ले जाने को लेकर भी कोई प्रतिबंध या रोक संबंधी कोई नियम भी नहीं है। अमरीका इस मिशन पर कितनी तेजी से काम कर रहा है इसका पता इस बात से ही चलता है कि नासा ने 2022 में तीन कंपनियों के साथ रिएक्टर डिजाइन करने के लिए 50-50 लाख डॉलर के समझौते किए थे।
चंद्रमा पर हीलियम-3 भारी मात्रा में मौजूद है। अंतरिक्ष के जानकारों के अनुसार हीलियम का एक आइसोटोप जोकि पृथ्वी पर बेहद दुर्लभ है। वह चंद्रमा पर मौजूद है। इसके अलावा चंद्रमा पर कई बेहद महत्वपूर्ण दुर्लभ धातुएं भी मौजूद हैं। माना जा रहा है कि इसी को देखते हुए अमरीका, रूस, चीन, जापान और भारत भी चंद्रमा पर पहुंचने के लिए स्पर्धा लगा रहे हैं।
अंतरिक्ष से जुड़े जानकारों का मानना है कि चंद्रमा पर ऊर्जा के लिए परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने को लेकर इसलिए भी जोर दिया जा रहा है क्योंकि चंद्रमा का एक दिन पृथ्वी के लगभग चार हफ्तों के बराबर होता है। इस लिहाज से वहां दो हफ्ते अंधेरा रहता है। ऐसे में रोशनी के लिए सौर ऊर्जा पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।
चंद्रमा पर परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजनाओं को लेकर कई सवाल और चिंताएं भी हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक शीतयुद्ध के दौरान अंतरिक्ष में पहुंचने की होड़ की तरह की यह भी एक अंतरराष्ट्रीय होड़ ही है। पृथ्वी के वायुमंडल से रेडियोधर्मी सामग्री को अंतरिक्ष में ले जाना बेहद जोखिम भरा हो सकता है।
वर्ष 2020 में सात देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें तय हुआ था कि चंद्रमा की सतह पर रिसर्च के लिए देश आपस में कैसे सहयोग करेंगे। इसमें एक सेफ्टी जोन बनाने की भी बात हुई थी। जहां अलग अलग देश चंद्रमा पर अपने उपकरण रखेंगे। इस बीच रूस और चीन को चंद्रमा पर नो एंट्री जोन घोषित किए जाने की भी आशंका है।
Updated on:
27 Dec 2025 04:16 am
Published on:
27 Dec 2025 03:40 am
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