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क्या फोन पर जातिसूचक शब्द कहना जुर्म है? कलकत्ता हाईकोर्ट ने SC/ST एक्ट पर दी बड़ी व्यवस्था

कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि फोन पर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल SC/ST एक्ट के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। कोर्ट के फैसले के मुताबिक, यह प्रावधान सार्वजनिक रूप से जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल पर ही लागू होते हैं।

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कोर्ट। फाइल फोटो

Calcutta High Court Verdict on SC/ST: कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि फोन पर किसी के लिए जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (एससी/एससी एक्ट) के प्रावधान लागू नहीं होते हैं। यह प्रावधान सार्वजनिक रूप से जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल पर ही लागू होते हैं। यह टिप्पणी जस्टिस जय सेनगुप्त ने अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की।

मामले के अनुसार याचिकाकर्ता के वकील ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करते हुए कहा कि इस मामले में एसी-एसटी एक्ट का मामला नहीं बनता। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि आरोपी ने टेलीफोन पर गालियां दी जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया। इसमें सार्वजनिक रूप से किसी भी स्थान पर किए जाने की जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किए जाने की आवश्यक शर्त की कमी है। वहीं, अन्य सभी आरोप जमानती है। वहीं राज्य के वकील ने केस डायरी और जांच के दौरान दर्ज गवाहों के बयानों के आधार पर अग्रिम जमानत का विरोध किया।

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस सेनगुप्ता ने कहा कि अगर आरोपों को सच मान लिया जाए तो भी कथित गालियां टेलीफोन पर दी गईं और सार्वजनिक रूप से इनका इस्तेमाल नहीं किया गया। ऐसे में एससी/एसटी एक्ट के प्रावधान लागू नहीं होते। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में विशेष अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार्य नहीं की जा सकती।

चार हफ्ते के लिए राहत

तदनुसार, कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को आदेश की तारीख से चार सप्ताह के भीतर संबंधित क्षेत्राधिकार न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी। कोर्ट ने निर्देश दिए कि यदि ऐसा कोई जमानत आवेदन दायर किया जाता है तो उस पर कानून के अनुसार विचार किया जाएगा। खास बात यह है कि कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को चार हफ्ते की इस अवधि के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।