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दुनिया का अनूठा शिवलिंग जो हर 6 महीने में बदलता है दिशा, वैज्ञानिक भी करते हैं चमत्कार को नमस्कार

Maleshwer Mahadev Temple : सामोद स्थित महार कलां गांव में एक अनूठा शिवलिंग ( Maleshwar Mahadev ) है जो हर 6 महीने में दिशा बदलता है। मंदिर में विराजमान शिवलिंग सूर्य की दिशा के अनुरूप चलने के लिए विख्यात है...

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जयपुर

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Dinesh Saini

Jul 23, 2019

Maleshwer Mahadev Temple

जयपुर। राजस्थान में कई चमत्कारिक मंदिर है। उनमें से एक मंदिर राजधानी जयपुर के पास अरावली पर्वत शृंखला के बीच बसे सामोद स्थित महार कलां गांव में है। इस मंदिर में एक अनूठा शिवलिंग ( Maleshwar Mahadev Temple ) है जो हर 6 महीने में दिशा बदलता है। मंदिर में विराजमान शिवलिंग सूर्य की दिशा के अनुरूप चलने के लिए विख्यात है। यह स्थान जयपुर से लगभग चालीस किलोमीटर दूर है। विक्रम संवत 1101 काल के इस मंदिर में स्वयंभूलिंग ( shivling ) विराजमान है। यहां आने वाले भक्तों ने बताया कि वैज्ञानिकों ने भी शिवलिंग के इस तरह से दिशा बदने के कारणों की खूब जांच पड़ताल की लेकिन वे भी भगवान के इस चमत्कार के आगे नतमस्तक हो गए और चमत्कार को नमस्कार करने लगे हैं।


सूर्य की दिशा में झुक जाता है शिवलिंग ( Maleshwar Mahadev Samod )
मालेश्वर महादेव मंदिर में विराजमान ये शिवलिंग हर छह माह में सूर्य के हिसाब से दिशा में झुक जाता है। सूर्य हर वर्ष छह माह में उत्तरायण और दक्षिणायन दिशा की ओर अग्रसर होता रहता है। उसी तरह यह शिवलिंग भी सूर्य की दिशा में झुक जाता है। अपने इस चमत्कार के कारण यह दुनिया में अनूठा शिव मंदिर ( Shivling ) है। मंदिर के पुजारी के अनुसार, वर्तमान में महार कलां गांव पौराणिक काल में महाबली राजा सहस्रबाहु की माहिशमति नगरी हुआ करती थी। इसी कारण इस मंदिर का नाम मालेश्वर महादेव मंदिर पड़ा। विक्रम संवत 1101 काल के इस मंदिर में स्वयंभूलिंग विराजमान है।


कुण्ड़ों का पानी कभी नहीं होता खाली
प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान अपने आप में काफी मनोरम है। जहां बारिश में बहते प्राकृतिक झरने, पानी के कुण्ड, आसपास पौराणिक मानव सभ्यता-संस्कृति की कहानी कहते अति प्राचीन खण्डहर इस स्थान की प्राचीनता को दर्शाते हैं। इस मंदिर के आसपास चार प्राकृतिक कुण्ड हैं, जिनका पानी कभी खाली नहीं होता हैं। ये कुण्ड मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों, जलाभिषेक और सवामणी आदि करने वालों के लिए प्रमुख जलस्रोत हैं। पहाडिय़ों से घिरे इस धार्मिक स्थल पर प्रकृति भी जमकर मेहरबान है। बारिश में मंदिर के आसपास प्राकृतिक झरने बहने लगते हैं। जो यहां की छटा को और भी मनमोहक बना देते हैं। बारिश ( rain ) के दिनों में रोज गोठें होती हैं।

मुगल काल में कर दिया था नष्ट
इस मंदिर की सेवा पूजा करते आए महंत के अनुसार, मुगल काल में इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। मंदिर में उस जमाने में तोड़ी गई शेष शैया पर लक्ष्मी जी के साथ विराजमान भगवान विष्णु जी की खण्डित मूर्ति आज भी यहां मौजूद है। कालांतर में मंदिर का जीर्णोद्धार कर इस पर गुंबद व शिखर का निर्माण करवाया गया।