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जज्बे को सलाम! जयपुर की मीना राजपूत मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों की जिंदगी संवारने का कर रही हैं काम

शहर में लक्ष्य चैरिटेबल ट्रस्ट एक ऐसी संस्था है, जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चोँ को शिक्षित करने और उनको समाज में एक अलग पहचान दिलाने में सहायता करती है।

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जयपुर

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Kirti Verma

Oct 17, 2023

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आरिफ खान
जयपुर। शहर में लक्ष्य चैरिटेबल ट्रस्ट एक ऐसी संस्था है, जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को शिक्षित करने और उनको समाज में एक अलग पहचान दिलाने में सहायता करती है। यहां ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त करीब 35 बच्चे हैं। पत्रिका प्लस से बातचित में लक्ष्य संस्था की संचालिका मीना राजपूत बताती हैं। मेरी बच्ची 9 साल की थी तब पता चला कि बच्ची सीनियर ऑटिज्म बीमारी से ग्रस्त है। उस समय लगा मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। मीना के मुताबिक स्पेशल बच्चों को समाज में आज भी स्वीकार आसानी से नहीं किया जाता है। अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए कई स्कूलों की तलाश की लेकिन कहीं सेटिस्फेक्शन नहीं मिला। ऐसे में आज से तकरीबन 9 साल पहले ऐसे ही बच्चों के लिए घर में खुद लक्ष्य सस्था की शुरुआत की जिसमें आज 35 ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे पढ़ रहें है। खास बात यह है कि यहां आने वाले बच्चों को नि:शुल्क एडमिशन दिया गया है।

स्पेशल बच्चों की लक्ष्य संस्था में बच्चे सुबह 9 से शाम 6 बजे तक पढ़ते है। यहां बच्चो को फिजियोथैरेपी के साथ नई-नई चीजें सीखने की कक्षाएं भी होती हैं। यहां सामान्य बच्चे भी आते है और उनसे कहा जाता है कि वे स्कूल के किसी एक बच्चे को दोस्त बनाएं। उससे मिलने कभी-कभी आएं। उनके साथ खेलें और बातचीत करें। इससे इन विशेष बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है और वे खुश भी होते हैं।

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थेरेपी से ठीक हुए बच्चे
मीना बताती है की सस्था में ऐसे बच्चे आते है जो चल भी नहीं पाते है। ऐसे बच्चो के लिए स्पीच थेरेपी,ऑक्यूपेशनल थेरेपी, फिजियोथेरेपी,एडीज थैरेपी, एडीएल थेरेपी से ठीक करने का प्रयास किया जाता है। थेरेपी के माध्यम से कई बच्चे ठीक भी हुए हैं।

संस्था में त्योहारों पर प्रदर्शनी लगाई जाती है
लक्ष्य संस्था की पाठशाला में बच्चों द्वारा बनाए गई चीज़ों जैसे मास्क, रुमाल, बैग, कागज़ के लिफ़ाफ़े और कपड़ों की प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। इसके अलावा त्योहारों पर राखी, कलात्मक दीये, रुई की बाती और फूलों की लड़ियां बनाना भी दिव्यांग बच्चों को सिखाया जाता है।

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इसलिए शुरू की संस्था
मीना बताती हैं कि जब उनकी बच्ची की बीमारी का पता ससुराल वालों को पता चला तो ससुराल वालों ने उन्हें घर से निकाल दिया और बोले की इस बच्ची को यहां से ले जाओ ये बच्ची इस घर में नहीं रह सकती है। इस दौरान मीना पर दुखों का पहाड़ सा गिर गया पीहर वालों ने सपोर्ट किया और लोन पर घर लेकर सस्था की शुरुआत की गई आज इस सस्था से कई बच्चे नार्मल होकर अच्छी स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहें है।