13 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

‘मेरे अल्फाज़ में असर रख दे…’ शीन काफ़ निज़ाम

एक हर्फ तुम भी हो...हर्फ एक मैं भी हूंलफ्ज़ क्यूं न हो जाएं...इस गहराई की नज़्म...संदेश दे जाती है आज की वैमनस्यता में एक होने का। कितनी शानदार बात कितनी खूबसूरती से तराश कर कह गए अज़ीम शायर शीन काफ़ निज़ाम ( Sheen Kaaf Nizam)। उन्होंने, 'सच बताओ, तुम समंदर हो...तुम्हें इतना तो याद है न, या इसे भी भूल बैठे... ग़र तुम्हें ये याद है कि तुम समंदर ( Sea ) हो...ये तुम्हारी मौज़ ( Wave ) है कि तुम जिसे चाहे भुला दो फिर कभी न याद करने को' सामेईन ( Audience ) को झकझोर दिया।

2 min read
Google source verification
'मेरे अल्फाज़ में असर रख दे...' शीन काफ़ निज़ाम

'मेरे अल्फाज़ में असर रख दे...' शीन काफ़ निज़ाम

शेर के माने हैं 'जानना'... शायर के 'जानने वाला' शायरी का मतलब है 'जानी हुई चीज' ...लोग जानते हैं उसे अपनी—अपनी तरह..। क्यों कि शायर तो जो अजाना है शेर से जानने की कोशिश करता है और जब वह कहीं से जानता है, तो उसे भी यही लगता है कि यही तो था जो मैं जानना चाहता था।
यह कहना है दुनिया के मशहूर शायर शीन काफ़ निज़ाम ( Sheen Kaaf Nizam ) का। वे जयपुर में 'शमीम जयपुरी' अवॉर्ड ( Shamim Jaipuri Award ) से नवाज़े जाने के मौके पर सामेईन ( Audience ) से मुखातिब थे। वे बानगी देते हैं कोलम्बस की, कि क्या खोजने निकला और क्या खोज लिया, मगर खुश था कि यही तो था जिसको जानना था, जिसकी खोज थी।
अज़ीम शायर निज़ाम ने कई बानगियों के साथ लफ्ज़ों की अभिव्यक्ति ( Presentation ) की अहमियत भी बताई। फिराक़ गोरखपुरी का शेर
'काफी दिनों से जीया हूं किसी दोस्त के बग़ैर...
अब तुम भी साथ छोड़ने का कह रहे हो...ख़ैर'
सुनाते हुए कहा कि यहां 'ख़ैर' ने जो एक्सप्रेशन दिया है, वह खुद फिराक़ के किसी शेर में फिर नहीं दे सका।
उन्होंने अल्फाज़ों के मायने दीग़र जगहों पर बदलने के भी उदाहरण दिए। खासकर, ग़रीब शब्द के बारे में बताया कि यह अरबी से फारसी का सफर कर उर्दू में आया, इसके मायने ही बदल दिए गए हैं। कहा, इसका वास्तविक अर्थ 'अज़नबी' होता है। हनुमान चालिसा के एक दोहे 'कौन सो संकट मोर गरीब को' जाहिर है, बाबा तुलसीदास ने इसका सही जगह इस्तेमाल किया है, अज़नबी के रूप में। इसी तरह, उन्होंने 'बिसात' और 'औक़ात' लफ्जों के बारे में भी तफ़सील से बता उन्होंने सामेईन को कई मर्तबा दांतों तले उंगली दबाने को मज़बूर कर दिया।
बेहतरीन नज़्में की पेश
एक हर्फ तुम भी... के साथ ही उन्होंने कई खूबसूरत नज़्में पेश कर मौजूद तमाम श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। देखें...
'चाहे कुछ भी पहनूं मैं...सज संवर लूं
कैसा लगता हूं जवाब इसका मुझे मिलता नहीं
जब तलत वो देख न ले और
उसके देखने को देख न लूं मैं' ने श्रोताओं को मोह लिया।
तो...'पहुंच ही जाती है मिलने घूमती...जिसे वो चाहती है
नदी के सामने नक्शा कहां!' पर सामेईन वाह—वाह कर उठे।
इसी तरह,
'समंदर तुम किसे आवाज़ देते साहिलों की सम्त भागे जा रहे हो...
क्या कोई तुम्हारा अपना है जिसे तुम ढूंढ़ते हो...'
और, 'कहानी कोई अनकही भेज दे...अंधेरा हुआ रोशनी भेज दे' जैसी नज़्मों से सामेईन को झकझोर दिया।
वहीं, 'अपने में गुम होने का गुमां न कर...' के साथ ही उनकी हर नज़्म पर हॉल मुक़र्रर और वाह—वाह से गूंजता रहा।
निज़ाम अपनी बात को विराम देने से पहले...
'मेरे अल्फाज़ में असर रख दे...'तू अकेला है बंद है कमरा...अब तो चेहरा उतार कर रख दे' सुनाकर गज़ब ढा गए।