
जयपुर. प्रदेश में सिंचाई के लिए 80 फीसदी से अधिक पानी खर्च होने के बावजूद पानी के इस्तेमाल के लिए राज्य सरकार ने न मास्टर प्लान बनाया और न ही 2010 से जल नीति को बदला गया है। पिछले 15 वर्ष में शहरीकरण बढ़ने के कारण बहुमंजिला इमारतों का चलन भी काफी बढ़ गया, लेकिन भूजल और सतही जल के भंडारों को बचाने के लिए कोई प्लान ही नहीं दिख रहा।
पानी के लिए मास्टर प्लान और मौजूदा परिस्थितियों के अनुरूप जलनीति नहीं होने से भूजल दोहन, पीने के स्वच्छ पानी की उपलब्धता और भूजल रिचार्ज जैसे विषय आम आदमी के जीवन का हिस्सा ही नहीं बन पाए हैं। उधर, वैज्ञानिक स्पष्ट कर चुके कि खाद्यान्न की पोषकता घट रही है। जलवायु परिवर्तन, खाद्यान्न में घटती पोषकता और खाली होते पानी के खजाने जैसे विषयों को लेकर दुनियाभर में चिंता है, लेकिन प्रदेश में चिंतन शुरूआती दौर में है। पिछले साल प्रदेश में अन्तरराष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों के साथ मिलकर खाद्यान्न सुरक्षा को लेकर एक रिपोर्ट भी तैयार हुई, लेकिन कृषि और खाद्यान्न क्षेत्र में कमजोरी की पोल खुलने के डर से सरकार ने इस पर खुलकर चर्चा तक नहीं की।
माइक्रो इरीगेशन स्कीम बनाई जा रही है, ताकि पानी की छीजत घटा कर खेती बढ़ाई जा सके
फव्वारा सिंचाई पद्धति से 30 से 40 प्रतिशत पानी की बचत
ड्रिप सिंचाई पद्धति से भी पानी का अपव्यय रुकता है
वाटरगन से कम समय में खेत में सिंचाई
पश्चिमी और मध्य राजस्थान में गेहूं, कपास, जैतून, मूंगफली और अनार की फसलों के लिए सिंचाई की अधिक आवश्यकता होने से पानी का ज्यादा खर्च हो रहा है। इसके विपरीत ज्वार, बाजरा, रागी, उड़द, मूंग, अरहर, ग्वार आदि से कम पानी में अच्छा उत्पादन मिल सकता है, लेकिन बाजार में इनकी मांग कम रहने से किसानों ने इनकी खेती नहीं बढ़ाई। हालांकि अब मोटे अनाज के प्रति जागरुकता बढऩे से इन फसलों को बढ़ावा मिल सकता है।
Updated on:
30 Aug 2024 09:11 am
Published on:
30 Aug 2024 09:04 am
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