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न एफआईआर दर्ज, न लुटेरों का सुराग

शहर के अति व्यस्त दुर्गा मंदिर क्षेत्र और ब्लॉक एरिया में शुक्रवार को पांच घंटे तक पिस्तौल की नोक पर महिलाओं से लूटपाट करने वाले लुटेरे अभी तक पुलिस गिरफ्त में नहीं आए। 

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Bhola Nath Shukla

May 17, 2015

शहर के अति व्यस्त दुर्गा मंदिर क्षेत्र और ब्लॉक एरिया में शुक्रवार को पांच घंटे तक पिस्तौल की नोक पर महिलाओं से लूटपाट करने वाले लुटेरे अभी तक पुलिस गिरफ्त में नहीं आए। वारदात के 36 घंटे बाद भी तीन मामलों में मुकदमा तक दर्ज नहीं किया गया। एक मामले में मुकदमा फाइल हुआ उसमें भी आम्र्स एक्ट की धारा तक नहीं लगाकर केवल छीनाझपटी की सामान्य घटना बताई गई है। शनिवार का आधा दिन पुलिस अधिकारियों की बैठक में पुलिस नाकामी पर घुड़की पिलाने और नोटिस जारी करने में बीता। शेष आधे दिन में पुलिस सड़कों पर दिखी। दर्जनों की तादाद में दुपहिया वाहनों के चालान और जब्ती में ही उलझी रही। अपने परम्परागत शाम होने तक एेसे आंकड़े तैयार कर दिए गए कि सरकार के स्तर पर जवाब तलबी हो तो अपनी सक्रियता को गिनाने के काम आ जाएं। हालांकि सत्तापक्ष के सक्रिय होने से मामला मुख्यमंत्री कार्यालय और गृहमंत्री तक पहुंच चुका है।
गौरतलब है कि शुक्रवार को तीन महिलाओं पर पिस्तौल तानकर बाइक सवार दो लुटेरों ने चेन और एक महिला से पर्स लूटने के बाद डीएसपी से लेकर थानेदार तक सभी ने पीडि़त महिलाओं से घंटों जानकारी जुटाई लेकिन नतीजा संतोषजनक नहीं मिला।
उठ रहा पुलिस से विश्वास
पुलिस का अपराधियों में भय और आमजन में विश्वास अब 'दरकनेÓ लगा है। लगातार बढ़ते अपराध और अपराधियों को पकडऩे में नाकाम रहने से पुलिस की छवि आम जनता के बीच खराब हो रही है। कमजोर रणनीतियां और लोगांें से जुड़ाव की कमी असफलता के मुख्य कारण बनकर उभरे हैं। पुलिस का न बीट सिस्टम अपडेट है, न सजगता और न ही संसाधन। जितना कुछ मौजूद है उसका भी सही सदुपयोग नहीं होता। पिछले दिनों की वारदातें पुलिस की असफलता बयान करती है। पुलिस के तमाम हालातों पर बिंदुवार विश्लेषण करती पत्रिका की रिपोर्ट

नहीं होता किराएदार का वेरिफिकेशन
शहर के एक बड़े समूह की ओर से अपने मकानों में किराएदार रखे जा रहे हैं। कुछ लोगों का तो यह आजीविका का एकमात्र साधन है। एेसे घरों में कौन रह रहा है और कहां का है यह पता करना मकान मालिक के साथ ही पुलिस की भी ड्यूटी है। किस थाना क्षेत्र में कितने किराएदार रह रहे हैं और कितनों का पुलिस ने वेरिफिकेशन किया है इसकी कोई साफ जानकारी नहीं मिलती।

मुखबिरों की कमी, कमजोर सूचना तंत्र
पुलिस को अपराधियों तक पहुंचाने में सूचना तंत्र अहम भूमिका निभाता है। पुलिस मुख्यालय की ओर से चलाई गई मुखबिर योजना इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए चलाई गई थी। लेकिन कई मामलों में आरोपियों के नहीं पकड़े जाने पर लगता है कि मुखबिरों की कमी से सूचना तंत्र कमजोर होने लगा है।

अपराधियों की शरण स्थली बनते हॉस्टल
इस संबंध में पुलिस के पास कार्रवाई का अधिकार नहीं है और इसी बात का फायदा उठाकर गली-गली में हॉस्टल खुले हुए हैं। इनमें कौन रह रहा है, कहां का है और क्या काम करता है इस बारे में पुलिस निरंतर जानकारी अपडेट नहीं करती। नतीजा यह होता है कि कोई बड़े आराम से वारदात कर गायब हो जाता है।

सजग पड़ोसी योजना का बंटाधार
इस योजना का भी अन्य पुलिस योजनाओं की तरह ही बंटाधार हो गया। अब तो नागरिकों को पता ही नहीं होगा कि यह योजना क्या है। असल में सजग पड़ोसी योजना में बीट कान्सटेबल अपने बीट में रहने वालों को बताता है कि जब भी कोई अपने घर पर ताला लगाकर बाहर जाए तब अपने पड़ोसियों को निगरानी के लिए सजग करता जाए। इसके साथ ही अपने बीट कान्सटेबल को सूचना दे जिससे कि पुलिस गश्त के दौरान वहां निगरानी कर सके।

लोगों से नहीं जुड़ाव
सीएलजी का उदेश्य यह भी था कि पुलिस लोगों से सीधे संवाद स्थापित करे। उनकी समस्याएं जानंें और आवश्यक्ता पर बिना भय के एक दूसरे की मदद करें। अब स्थिति इससे उलटी है। लोगों से पुलिस का जुड़ाव नहीं है। गिने चुने लोग ही थानों और अधिकारियों के इर्द गिर्द घूमते देखे जा सकते हैं। सच तो यह है कि आज भी लोग संतरी को ही थानेदार समझकर संबोधित करते है। यह जमीनी हकीकत है जिसे रोजाना नजदीक से देखा जा सकता है।