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सदियों से जिन इंसानों की साथी रही, आज लुप्तप्राय गौरैया को लुप्त होने से बचा रहे वही इंसान

घरेलू गौरैया, जो कभी पहले पर्यावरण का एक अटूट हिस्सा थी, वह अब गायब होने के कगार पर है। जो पक्षी कल तक आपके बरामदे और झरोखों में आकर बैठता था वह आज इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की लुप्तप्राय प्रजातियों की लाल सूची में बैठता है। लोग लुप्त हो रही इस नन्ही चिड़िया को बचाने के लिए अलग अलग तरह के जतन कर रहे है।

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घरेलू गौरैया, जो कभी पहले पर्यावरण का एक अटूट हिस्सा थी, वह अब गायब होने के कगार पर है। जो पक्षी कल तक आपके बरामदे और झरोखों में आकर बैठता था वह आज इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की लुप्तप्राय प्रजातियों की लाल सूची में बैठता है। लोग लुप्त हो रही इस नन्ही चिड़िया को बचाने के लिए अलग अलग तरह के जतन कर रहे है।

सदियों से है मनुष्यो की साथी…

वैज्ञानिक अध्ययनों ने दर्शाया है कि घरेलू गौरैया ने हर जगह इंसानों का पीछा किया हैं। जहां जहां इंसानों ने अपनी बस्ती बसाई वही गौरैया ने अपना बसेरा बनाया। बेथलहम की एक गुफा से 4 लाख साल पहले के जीवाश्म साक्ष्य से यह पता चला है कि घरेलू गौरैया ने शुरुआती दौर में मनुष्यों के साथ अपना स्थान साझा किया था। 2018 की रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन की रिपोर्ट के मुताबिक, मनुष्यों और गौरैया के बीच का संबंध 11 सौ साल से भी पुराना है। घर की गौरैया में मिलने वाले स्टार्च-फ्रेंडली जीन हमें अपने विकास से जुड़ी एक कहानी बताते हैं। यही नहीं, अध्ययन में यह कहा गया है कि कृषि ने तीन अलग-अलग प्रजातियों, जैसे की कुत्तों, घरेलू गौरैया और मनुष्यों में समान स्थिरता को बढ़ावा दिया है।

2 साल में गौरैया के लिए बनाए 600 घरौंदे, 4000 परिंडे भी लगाए

अंजू गर्ग ने बताया की कोरोना के बाद से ही उन्होंने अपने मित्रों के साथ मिलकर गौरैया को बचाने के लिए मुहिम चलाई। उनकी टीम ने गौरेया के लिए अब तक 600 घरौंदे लगाए है व साथ ही करीब 4000 परिंडे भी लगा चुके हैं। ही तक उन्होंने अपने मित्रों के साथ मिलकर इस मुहिम के लिए पैसे एकत्रित किए।


गौरेया के लिए डालें छोटे दाने…


अंजू गर्ग ने बताया की गौरेया ज्वार, मक्का जैसा भोजन नहीं पचा सकती। इस तरह के खाने से कबूतर जैसे पक्षी आकर्षित होते है। गौरेया के लिए भोजन में छोटे दाने जैसे की बाजरा, दलिया, किनकी चावल ठीक रहते है।


घरेलू गौरैया की हो रही दुर्दशा…

ट्रैवल वाइल्डलाइफ सोसाइटी ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट सजल जुगरान ने बताया की 2009 से शहरी पक्षियों की आबादी में गिरावट आई है। उन्होंने बताया की वह और उनकी टीम गौरैया के पुनरुद्धार के कारणों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने बताया की यह पक्षी हमारे साथ विकसित हुआ। साथ ही लगभग 10,000 साल पहले जब से हमने खेती करना शुरू किया है तब से यह पक्षी हमेशा मानव बस्तियों के करीब रहा है। हमारे साथ उनकी निकटता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पेड़ों पर प्रजनन का पूरी तरह से बहिष्कार किया और इसके बजाय मानव बस्तियों की सुरक्षा को चुना।

उन्होने बताया की लगभग पचास साल पहले तक उनकी आबादी प्रागैतिहासिक से लेकर कृषि और औद्योगिक युग तक कई गुना बढ़ गई थी। लेकिन वह मानवोंके विकास के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाए और पीछे रह गए। हमारी जीवनशैली और उन्होंने बताया कि वास्तुकला में भारी बदलाव ने इस नन्ही चिड़िया को इंसानों के साथ अपनी ऐतिहासिक निकटता से दूर कर दिया।

सजल ने बताया कि घरेलू गौरैया की संख्या में हालिया गिरावट के लिए मुख्य रूप से सीलबंद बहुमंजिली इमारतें, सुसज्जित उद्यान, कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग आदि जिम्मेदार हैं। अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में पक्षी प्रजनन के लिए इच्छाशक्ति खो देते हैं, जिससे अचानक सामूहिक विलुप्ति हो जाती है। जैसा कि ग्रेट ब्रिटेन में हुआ था, और इस घटना को एली इफेक्ट कहा जाता है।

गौरैया के लिए बनाते हैं स्पेशल डिजाइन के घर

उन्होंने बताया की घटते प्राकृतिक आवास के साथ, गौरैया ने उनके विशिष्ट रूप से डिज़ाइन किए गए कृत्रिम घोंसले के बक्से के अनुकूल होना सीख लिया है। जिसे घर की बालकनी पर कील से ठोंका जा सकता है।